धर्म-कर्मबिहारसमाचारसहरसा

शंकराचार्य हिन्दुध्वज के अद्भुत संवाहक परन्तु मंडन मिश्र सुरेश्वराचार्य नहीं: अक्षय कुमार चौधरी

सुभाष चन्द्र झा की रिपोर्ट

सहरसा : जगतगुरु शंकराचार्य श्री गोवर्धन मठ पीठाधीश्वर महाराज निश्चलानंद सरस्वती का 3 से 5 अप्रैल तक महिषी प्रवास क्रम में गाॅंव के ठकुरबाड़ी में आमजनों के साथ प्रश्नोत्तरी संगोष्ठी और मंडन धाम पर एक विशाल धर्मसभा को संबोधित किया गया। भारतवर्ष में शंकराचार्य वैचारिकी परंपरा में माहिष्मति के महान मिमांशक पंडित मंडन मिश्र और शारदापीठ कश्मीर के पीठाधीश्वर शंकराचार्य सुरेश्वराचार्य को एक ही व्यक्ति माना जाता रहा है। जिसे मिथिला के विद्वान अस्वीकार करते रहे हैं।

 

मंडन मिश्र धाम महिषी में पर्यटन मंत्रालय द्वारा प्रतिवर्ष श्री उग्रतारा सांस्कृतिक महोत्सव में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय सेमिनार और वाद विवाद में अकादमिक विद्वान मुख्य रूप से किशोर नाथ झा, उदयनाथ झा अशोक, सुरेश्वर झा, शशिनाथ झा, देवनारायण झा, चितनारायण पाठक, नंदकिशोर चौधरी, पंकज मिश्र, रामनाथ झा, रामचैतन्य धीरज इत्यादि द्वारा मंडन मिश्र का सुरेश्वराचार्य बनकर शारदापीठ कश्मीर के शंकराचार्य बनने की कथा को मात्र एक चतुर शिष्य द्वारा अपने आध्यात्मिक गुरू आदिशंकराचार्य को मंडन मिश्र पर विद्वता की श्रेष्ठता स्थापित करने का प्रयास माना जाता है।

यह भी पढ़ें  लापता पति के बरामदगी हेतु महिला ने कराया प्राथमिकी दर्ज

 

जिसकी प्रमाणिकता को केवल अस्वीकार ही करने योग्य है। यद्यपि एक विद्वान के रूप में मंडन मिश्र से अलग सुरेश्वराचार्य के अस्तित्व को अस्वीकार नहीं किया जाता है। आदिशंकराचार्य द्वारा स्थापित चार मठों में पीठासीन बाद के शंकराचार्य गृहस्थाश्रम के गौण महत्त्व और उस पर संन्यास आश्रम की श्रेष्ठता स्थापना हेतु अत्यल्प कपोल कथाओं का सृजन किया गया है । माहिष्यमति में मंडन मिश्र के प्रादुर्भाव के हजार वर्ष उपरांत शंकर दिग्विजय की रचना उसमें से एक है। संन्यासी शंकराचार्य के योगसिद्ध आत्मा को एक मृत राजा अमरूक के शरीर में प्रवेश करा कर इनक जीवित पत्नि के साथ यौन संबंध की कथा फैला कर कालांतर में बौद्ध धर्म में तांत्रिक विद्या के प्रवेश को मान्यता और उसके श्रेष्ठता को स्वीकार कर लेने के पक्ष में वजनी तर्क प्रस्तुत करना समझा जा सकता है।

यह भी पढ़ें  रक्तदान शिविर सह रक्तदाता सम्मान समारोह 20 फरवरी को

 

किन्तु एक सनातनी योगी एवं ब्रह्मचारी के लिये परस्त्रीगमन की कथा भारी अपमानजनक चारित्रिक आरोप है। कथाकार माध्वाचार्य चालाकी करने के क्रम मे शायद यह भुला गये कि स्त्रीगमण क्रिया मात्र दैहिक नहीं हैं कि अपना देह त्याग कर एक व्याहे पति के मृत शरीर में प्रवेश कर कोई सन्यासी आत्मीय सुख या गूढ़ ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। परस्त्रीगमन से अथवा बिना शारीरिक समागम क्रिया किये परस्त्री के साथ मानसिक स्थिति में जा कर वैचारिक गमन से प्राप्त आत्मीय सुख दोनो समान रूप से धर्मशास्त्र में अनाधिकृत और पापयुक्त माना गया है। महिषी के गृहस्थाश्रमी लोगों को संन्यासी आदिशंकराचार्य या कि उस परंपरा के चार पीठों के संन्यासी शंकराचार्य के प्रति आत्मीय आदरभाव है। महिषी आगमन पर इनके आतिथ्य सत्कार में किसी प्रकार का त्रुटि नहीं रह जाए इस हेतु सभी इनके साथ वाद विवाद अथवा कठविवाद से बचने की कोशीश करते रहे।

यह भी पढ़ें  शिव मंदिर में होगी गायत्री महायज्ञ: धार्मिक उत्सव की होगी भव्यता

 

मिथिला के अधिकांश लोग संन्यास धर्म के प्रसंग में गार्हस्थ जीवन की अप्रासांगिकता का तर्क इस अर्थ में भी अस्वीकार करते समझ आते हैं कि महिषी की चार अप्रैल की धर्मसभा में कोई भी एक व्यक्ति जगतगुरू निश्चलानंद शंकराचार्यजी महराज से संन्यास की दीक्षा लेना स्वीकार नहीं किये। उक्त विमर्श में मेरा भी स्पष्ट पक्ष है कि मण्डन मिश्र के कर्म ज्ञान सम्मुच्चय सिद्धांत का काट आदिशंकराचार्य के सिद्धांत में नहि है। तथापि अपने गॉंव पधारे प्रिय अभ्यागत पुज्यपाद भगवान शंकर के साक्षात अवतार पुरूष शंकराचार्य के प्रति अपरिमित श्रद्धा और सम्मान है। वे अपने संन्यास धर्म की विशिष्टता के वैचारिक आस्था के साथ हिन्दुध्वज के एक अद्भुत संवाहक हैं ।

Gaam Ghar Desk

गाम घर डेस्क के साथ भारत और दुनिया भर से नवीनतम ब्रेकिंग न्यूज़ और विकास पर नज़र रखें। राजनीति, एंटरटेनमेंट और नीतियों से लेकर अर्थव्यवस्था और पर्यावरण तक, स्थानीय मुद्दों से लेकर राष्ट्रीय घटनाओं और वैश्विक मामलों तक, हमने आपको कवर किया है। Follow the latest breaking news and developments from India and around the world with 'Gaam Ghar' news desk. From politics , entertainment and policies to the economy and the environment, from local issues to national events and global affairs, we've got you covered.

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button