भाषा-साहित्य

इश्क़ इक दर्दे दवा है – रश्मि प्रदीप

ग़ज़ल

रश्मि प्रदीप

सुना था इश्क़ इक़ दर्दे दवा है
ग़लत थी मैं बड़ी ये बेवफ़ा है।

जहां हर शख्स चोटें खा रहा है,
वहीं तो ज़िंदगी का फ़लसफ़ा है।

खुदा जाने हमारी आरज़ू को,
ग़लत कुछ भी नहीं हमनें किया है।

जुबां से क्यों शहद टपका रहे हैं,
यहाँ लोगों के दिल में क्या छिपा है।

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यहाँ अब रूह करती प्रार्थनाएं,
चले आओ जगत की प्रार्थना है।

नयन व्याकुल तुम्हें ही ढूंढ़तें हैं,
चले आओ कन्हैया इल्तिज़ा है।

शराफत है यही की पूजती हूँ,
तू मेरी रूह है कुछ तो पता है।

सँभालो तो सँभल जाएंगे हमदम,
तुम्हीं से ज़िन्दगी का रास्ता है।

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मेरा तुम क्या बिगाड़ोगे यहाँ पर,
मेरे सँग में खड़ा हरदम खुदा है।

बुरा जो सोचते होगे हमारा,
तो सोचो, यार इसमें क्या बुरा है।

इरादे नेक रखना ज़िन्दगी में,
सुना है की खुदा सब देखता है।

तुम्हें मेरी जरूरत किसलिए हो,
मेरा अब कारवां तो टूटता है।

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Gaam Ghar

मचलना छोड़ दो गहरे बनो तुम,
तभी जग में यहाँ तू टिक सका है।

तुम्हीं से ज़िन्दगी मेरी हँसी थी,
चले आओ तुम्हीं से राबता है।

ज़रा सी चोट पायी है वफ़ा में,
मेरा हमदम हुआ अब बेवफ़ा है।

रश्मि प्रदीप, कोटा, राजस्थान.

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