राह चलते खुदा का कहीं घर मिला
दर-ब-दर ही मिला जो भी उस दर मिला
वो जो खुशियाँ लुटाता रहा जीस्त भर
आख़िरी दम तलक अश्क से तर मिला
आ रही थी सदा जाने किस ओर से
जिस तरफ भी गए सूना बंजर मिला
खुद ही मेटा किए औ बनाया किए
अनगढ़ा ही रहा जो मुकद्दर मिला
ख्वाब रूठे थे जो झिलमिलाने लगे
चाँद भी आज छत पर सँवरकर मिला
पढ़ता संजीदगी से सबक जीस्त की
हर उदासी के बाद औ निखरकर मिला
राह आसान होती नहीं कोई भी
गुल भी ख़ारों से अक्सर गुजरकर मिला
सिंधुसुता सृष्टि, चंदौली, उत्तर प्रदेश
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