बिहार में जड़ी-बूटियों से दवाएं बनाने की योजना, नीतीश सरकार का बड़ा कदम
Patna : बिहार सरकार राज्य में पाई जाने वाली औषधीय जड़ी-बूटियों से दवाओं और अन्य उत्पादों का निर्माण करके उन्हें बाजार में उतारने की दिशा में बड़ा कदम उठा रही है। राज्य के जंगलों और पहाड़ों में पाई जाने वाली जड़ी-बूटियों की समृद्धता को देखते हुए, बिहार के 11 जिलों में व्यापक सर्वेक्षण पूरा कर लिया गया है। इस सर्वे में 52 प्रकार की जड़ी-बूटियों की पहचान की गई है, जिनका शोधन कर 250 से अधिक औषधीय उत्पाद तैयार करने की योजना है। इस पहल से राज्य में रोजगार के नए अवसर उत्पन्न होंगे, जिससे लगभग 10,000 लोगों को प्रत्यक्ष और 50,000 से अधिक लोगों को अप्रत्यक्ष रूप से लाभ मिलेगा।
रोजगार और आर्थिक विकास के नए अवसर
इस योजना के तहत, नालंदा, नवादा, गया, रोहतास, जमुई, वाल्मीकिनगर, औरंगाबाद, कैमूर, बांका, मुंगेर, और बेतिया के जंगलों-पहाड़ों में पाए जाने वाले औषधीय पौधों का सर्वे किया गया है। सर्वे के बाद इन पौधों का प्रोसेसिंग, पैकेजिंग और मार्केटिंग के लिए विशेष रणनीति तैयार की गई है, ताकि इन उत्पादों को वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार किया जा सके। पहले चरण में, राज्य के 800 से अधिक गांवों को इस योजना से जोड़ा गया है, जहां सूधा बूथ और ग्रामोद्योग की दुकानों में इन उत्पादों के काउंटर खोले जाएंगे।
वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री डॉ. प्रेम कुमार ने बताया कि इस योजना से उन लोगों को भी फायदा होगा, जिनकी जीविका पहले से ही जंगलों और पहाड़ों के पास पाई जाने वाली जड़ी-बूटियों पर निर्भर है। इस योजना का उद्देश्य न केवल औषधीय उत्पादों का निर्माण करना है, बल्कि इनसे जुड़े पारंपरिक ज्ञान और स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाना भी है।
पौराणिक और ऐतिहासिक जड़ें
बिहार में औषधीय जड़ी-बूटियों का इतिहास बहुत पुराना है। बौद्ध साहित्य के अनुसार, राजगीर में प्रसिद्ध वैद्यराज जीवक रहते थे, जिन्होंने यहीं की जड़ी-बूटियों से भगवान बुद्ध और राजा बिम्बिसार का उपचार किया था। आज भी देशभर के आयुष चिकित्सक बिहार की इन जड़ी-बूटियों का उपयोग करते हुए विभिन्न रोगों का इलाज करते हैं।
जिला वन प्रमंडल पदाधिकारी राजकुमार एम. ने बताया कि राजगीर और नवादा के पहाड़ों पर पाई जाने वाली जड़ी-बूटियों के पौराणिक प्रमाण हैं। पहले चरण में, राज्य की 52 जड़ी-बूटियों को चयनित किया गया है, जिसमें जंगली प्याज, सतमूली और हरमदा प्रमुख हैं। आगे चलकर आयुष मंत्रालय के सहयोग से अन्य जड़ी-बूटियों का अध्ययन भी जारी रहेगा। इसके अलावा, छत्तीसगढ़ की तर्ज पर बिहारी जड़ी-बूटियों की ब्रांडिंग कर, उन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार में पहचान दिलाने की योजना बनाई गई है।
प्रमुख औषधीय जड़ी-बूटियों के लाभ
राज्य में जिन जड़ी-बूटियों को शामिल किया गया है, उनमें से कई महत्वपूर्ण औषधीय गुणों के लिए जानी जाती हैं। उदाहरण के लिए, गुड़मार का उपयोग शुगर नियंत्रण में, अश्वगंधा का उपयोग इम्यूनिटी बढ़ाने और ब्रेन टॉनिक के रूप में, गिलोय का उपयोग रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए, और अर्जुन छाल का उपयोग हृदय रोगों और ब्लड प्रेशर में किया जाता है। इसके अलावा, ब्राह्मबूटी स्मरण शक्ति को बढ़ाने में और शंखपुष्पी नींद की समस्या के लिए लाभकारी मानी जाती है।
बिहार की अर्थव्यवस्था में नई उम्मीद
बिहार सरकार की यह योजना न केवल राज्य के औषधीय संसाधनों का उपयोग करेगी, बल्कि इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिलेगी। जिन गांवों के लोग इन जड़ी-बूटियों के संग्रह और पारंपरिक ज्ञान से जुड़े हैं, उन्हें अब इस योजना के तहत प्रोसेसिंग, पैकेजिंग और मार्केटिंग के कार्यों में भी शामिल किया जाएगा। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में स्थायी रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा।
इस योजना का उद्देश्य बिहार की जड़ी-बूटियों को एक ब्रांड के रूप में स्थापित करना और इनके औषधीय उत्पादों को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार करना है। इस पहल से न केवल स्वास्थ्य क्षेत्र में लाभ होगा, बल्कि बिहार की सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहर को भी संरक्षित किया जा सकेगा।