
किस क़दर है काम में लाया हुआ
हर तअल्लुक़ ज़ंग है खाया हुआ
रोज़ थोड़ा थोड़ा मैं ज़ाया हुआ
तब इकट्ठा घर में सरमाया हुआ
कौन देकर रास्ता तन्हा रहे
रौशनी रोकी तो ये साया हुआ
मिल गया पत्थर टहलते घूमते
आदमी का टैटू गुदवाया हुआ
ख़ूब करता हूँ शिकायत मैं तेरी
बस गला रहता है भर्राया हुआ
ज़िंदगी पर आप ही इतराइये
ये गुनह मेरा है पछताया हुआ
आप जो पीकर नहीं हैं होश में
वो तो बस मेरा है छलकाया हुआ
आ गया मेरे पते पर राहगीर
जाने किसका होगा भटकाया हुआ
अपना हाफ़िज़ ढूँढता है दर-ब-दर
मौलवी पंडित का भरमाया हुआ
सुशान्त वर्मा, लखनऊ, उत्तर प्रदेश.