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प्रभु राम रास्ता दिखाते रहें और हम उस पर चलने का सार्थक प्रयास करते रहें – विनय तिवारी

उत्साह, उपासना, उत्सव और उपहार का अद्भुत संगम धनतेरस से शुरू हुए पंचदिवसीय दीपोत्सव का आगमन!

उत्साह, उपासना, उत्सव और उपहार का अद्भुत संगम धनतेरस से शुरू हुए पंचदिवसीय दीपोत्सव का आगमन!

दीपोत्सव (दीपावली) : ये संस्कृति,कला, गीत ,संगीत, कविता, हर्ष, उल्लास, उपासना, पूजा के दिन हैं। भारतीय दर्शन त्योहारों और उत्सवों को जीवन का अभिन्न अंग मानता है। फसल काटने का उत्सव, ऋतुओं का उत्सव और तरह तरह के अनंत उत्सव हमारे जीवन को रेखांकित करते हैं। शरद की पूर्णिमा से कार्तिक की पूर्णिमा ( देव दीपावली) तक पूरे भारतवर्ष में एक अनुपम जाग्रति होती है। प्रकाश और ज्ञान का पर्व आता है। आने वाले शीत ऋतु के अंधेरों से निपटने की शक्ति आती है। शरद पूर्णिमा पर चंद्र की शीतलता का दर्शन मिलता है तो कार्तिकमास- कृष्णपक्ष की अमावस्या दीपावली पर ज्योति के प्रकाश का दर्शन मिलता है। शारदीय नवरात्र से चलकर विजयदशमी और चंद्र की पूर्णआभा के शरद पूर्णिमोत्सव से कार्तिकमास- कृष्णपक्ष की अमावस्या पर प्रभु राम की अयोध्या वापसी के दीपोत्सव तक की प्रचंड उत्सवबेला पूरे भारतवर्ष को दैदीप्यमान कर देती है।

दीपोत्सव के दर्शन से जो प्रकाश मिलता है वो हमेशा स्वयं को प्रेरणा देता रहता है। ऐसे तो सम्पूर्ण जीवन हम स्वयं को ढूंढते रहते हैं। हम क्या हैं। हम कौन हैं। दीपावली जैसे पर्वों में निहित दर्शन परंपरा में इन प्रश्नों की व्याख्या का सूत्र प्रकाश ही जीवन है । प्रत्येक प्रदीप्त ज्योति ही परब्रह्म और परम आत्म का स्वरूप है। दीपक हमारे जीवन का चित्रण है। मिट्टी का दीया भौतिक जगत है और कपास की बाती हमारा नश्वर शरीर है और ज्योति स्वरूप प्रकाश हमारी चिरंतन आत्मा है। जिसे सदैव प्रकाशित रहना है। हमें अपने भौतिक अस्तित्व को लगातार अनवरत जलाना है। हमारे आत्म का उद्देश्य ही अपने तम का नाश करना है। हम जितना जलेंगे उतना हमारी चेतना दीप्त होगी। उतना अधिक प्रकाशमान हम होंगे। स्वयं के जलने से ही स्वयंसिद्धि होगी।

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जितना अधिक भौतिक अस्तित्व श्रम करेगा , जितना अपने आप को हम जलाएंगे, उतनी अधिक हमारी आत्मा प्रज्जवलित होगी। स्वयं जलने से हम स्वयं सिद्ध होते हैं और स्वयंसिद्ध आत्म ही समस्त तम का हरण करता है। स्वयं जलने से हमारे अन्दर नम्रता और समर्पण का भाव उत्पन्न होता है। जितनी अधिक तपस्या होती है उतना अधिक व्यक्ति प्रकाशमान और विनम्र होता है। जाग्रत हुई विनम्रता प्रकाश का सदुपयोग समस्त जगत के कल्याण के लिए करती है। स्वयंसिद्ध आत्म का प्रकाश समस्त भूमंडल को दैदीप्यमान करता है। जैसे प्रभु राम पूरे जगत को प्रकाशित करते हैं। उनकी आभा पूरे भूमंडल को प्रकाशित करती है। राम की चेतना ही भारतीय मानवता की ज्योतिपुंज है। स्वार्थ का नाश करते हुए मर्यादा के उच्चतम शिखर की परमार्थ हेतु की जाने वाली राम की यात्रा ही दीपावली है।

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राम कार्तिक मास की इस अवधि में ही अवध के अयोध्या वापस आए थे, अपने घर वापस आए थे, अपनी वनवास की यात्रा समाप्त कर आए थे। इस यात्रा ने अवध के राजकुमार को भगवान राम बनाया था। ये यात्रा सिर्फ वनवास की नहीं थी। राम की यह यात्रा सिर्फ रावण से युद्ध की भी नहीं थी! ये यात्रा थी, भविष्य के आदर्श की स्थापना की। ये यात्रा थी, मानवता के शिखर तक पहुंचने की।

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ये यात्रा थी, स्वयं को परिष्कृत करने, स्वयं को परिमार्जित करने की, चरित्र के शीर्ष की स्थापना की, व्यक्तित्व के अनवरत विकास की, परिवार के आदर्श की, समाज के दिव्य संस्कार की, मानव के ईश्वर बनने की, आत्मा के परमात्मा होने की। राम की इस यात्रा से उभरे दिव्य उजाले से हम सभी का जीवन सदैव प्रकाशित होता रहे।

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राम रास्ता दिखाते रहें और हम उस पर चलने का सार्थक प्रयास करते रहें। प्रभु राम के अयोध्या वापसी के अवसर पर, अपने आत्म को दीप्त करने वाले, दीपों के पर्व पर सभी तरह के अंधेरे को समाप्त करने वाले , प्रकाश की आभा में तम को जलाने वाले , स्वयं जलने का दर्शन दीप की ज्योति से देने वाले। कार्तिक मास की उत्सवबेला के शीर्ष महापर्व दीपोत्सव दीपवाली के महाआनंद की अनंत शुभकामनाएं। दीपः ज्योति नमस्तुते.

Gaam Ghar

Editor

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