Movie-Reviewsमनोरंजन

बॉलीवुड फिल्म द कश्मीर फाइल्स

Nitesh Bhardwaj

Bollywood MOVIE REVIEWS 
The Kashmir Files
GAAM GHAR
Nitesh Bhardwaj 
आज मैंने कश्मीर फ़ाइल देखा, इसके पक्ष और विपक्ष की प्रतिक्रिया की दृष्टिगत भी देखा, बहुतेरे लोग बिना देखे भी अपनी राय रख रहे थे और कुछ देखने के बाद भी, कश्मीर फ़ाइल को यदि फ़िल्म ना कहकर डॉक्युमेंट्री कहें तो कोई बहुत अतिशयोक्ति नही होगी, फ़िल्म में सारी वस्तुस्थिति को हुबहू दिखाने की कोशिस की गई है लेकिन अति उत्साह में कहीं कहीं अधिक भी हो गई है, कई समस्याओं को एक साथ दर्शकों को समझाने में अक्सर ऐसा ही होता है.
वस्तुतः इस फ़िल्म को जो लोग हिंदू मुस्लिम से जोड़कर देखते है वह भी ग़लत है ,फ़िल्म आतंकवादियो की क़हर को दर्शाता है और दुर्भाग्य से आतंकवादी मुस्लिम है तो इसके निर्माता का क्या दोष ? फ़िल्म में दोनो पक्ष की दलीलें को बखूबी दिखाया गया है, शोषण आतंक,ख़ौफ़ उनका लक्ष्य है जिसे वे पूरा करने में लगे रहते है , भारत से कश्मीर को अलग स्वतंत्र मानसिक देश के लिए हर विभत्स कार्य करते है जिससे ख़ौफ़ हो , शीर्ष नेता अपनी सत्ता के ख़ातिर इन विवादों से अलग बनाए रखता है उसे पीड़ित का ख़याल कम और कुर्सी की अधिक रहती है, मीडिया की भूमिका को भी बखूबी दिखाया है, योजना वद्ध किसी नरेटिव को कैसे मूर्त रूप दिया जाता है यह भी भलीभाँति समझाने में सफल हो गया है निर्देशक ।सोची समझी योजना के तहत एक नरेटिव को कैसे उच्च शैक्षणिक संस्थानों में युवाओं को प्रशिक्षित किया जाता है और त्रीव बुद्धिमत्ता वाले दिमाग़ को कैसे माइंड वाश किया जाता है यह भी दिखाया गया है ,कश्मीर को इतिहास से जोड़कर भारत की अस्मिता को भी दिखाने की कोशिस की गयी।
ऐक्टर की आख़िरी भाषण में फ़िल्म का पूरा उद्देश्य बताने की भी भरपूर कोशिस है, इस कहानी को केवल कश्मीर से जोड़कर देखना या हिंदू मुस्लिम से जोड़कर देखना ना इंसाफ़ी होगा ,यह एक सच है जो दुनिया के हर क्षेत्र में सोची समझी दिमाग़ से किसी भूभाग के भूगोल को बदलने के लिए काफ़ी है , और इससे बचने के लिए समय से पहले होशियार रहना भी ज़रूरी है ।आप एक बार भूल जाए की पीड़ित कश्मीरी पंडित है आप याद रखें की वो आप है और गुनाह करने वाला एक देश द्रोही है और उसके पीछे जो है वो भी हमी आपके बीच का ग़द्दार है।
हाँ विभत्स दृश्य देखकर मन में आक्रोश और घृणा स्वाभाविक है लेकिन वह भी सत्य है ।लेकिन बहुत कुछ दृश्य के वैग़ैर भी यह फ़िल्म पूरी की जा सकती थी ,इसे और अधिक आक्रोश और घृणा की आवश्यकता नही थी ,पल्लवी जोशी की भूमिका चुनौतिपूर्ण थी ,अनुपम खेर जिस स्वाभाविक अभिनय के लिए जाने जाते है उसे बखूबी निभाया ,कुछ और नया नही था ,मिथुन दाँ की भूमिका भी उम्मीद से ज़्यादा मजबूत है ,खलनायक की मज़बूत अभिनय ही फ़िल्म को गति प्रदान करती है ।पूर्वाग्रह के कारण फ़िल्म की आलोचना ठीक नही ,राजनीतिक दृष्टिकोण से यह फ़िल्म कही कहीं एक पक्षीय बनता दिख जाता है ,जिससे निर्देशक को बचना चाहिए था।

यह भी पढ़ें  अयाची नगर युवा संगठन द्वारा अंतराष्ट्रीय महिला दिवस पर आयोजित निबन्ध प्रतियोगिता का पुरूस्कार वितरण

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button