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जैविक खाद से केले की खेती, कम लागत में अधिक पैदावार

मुजफ्फरपुर : सकरा के गन्नीपुर बेझा गाँव के राम नंदन प्रसाद जैविक खाद से केले की खेती कर कम लागत में अच्छी पैदावार लेते हैं। वह एक हेक्टेयर भूमि से प्रति वर्ष 75 टन केले की बिक्री करते हैं। उनसे प्रेरित होकर मछही व उसके आस-पास के गाँवों के 22 किसान केले की खेती करके अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं।

घारी काटने के बाद खेत में काटकर छोड़ देते हैं केले का पौधा – केले की घारी काटने के बाद वह पौधे को भी काट देते हैं और उसे खेत में ही छोड़ देते हैं। उसे सड़ाकर जैविक खाद बनाते हैं। यह खाद पौधे के विकास में कारगर है ही, अतिरिक्त कोई खर्च भी नहीं है। पौधा कटने के समय तक केले की जड़ से उसकी दूसरी पुत्ती तैयार हो जाती है। कुछ पौधों में तो एक अधिक पुत्ती तैयार होती हैं।

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इससे करीब पांच वर्षों तक केले का नया पौधा नहीं लगाना पड़ता है। पहली बार में केले में 14 माह में फल तैयार होता है, जबकि दूसरी बार से 12-12 माह का समय लगता है। इतना ही नहीं राम नंदन ने पौधे की सिंचाई के लिए ड्रिप इरीगेशन सिस्टम लगा रखा है। इससे पानी की जरूरत कम होती है। डीजल की भी बजत होती है।

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केले की खेती से जुटाए हैं साधन – राम नंदन मैथ में गोल्ड मेडलिस्ट रह चुके हैं शहर की बड़ी नौकरी को छोड़ खेती की तरफ अपना रुख किया और आज वह अपने क्षेत्र में किसानों व युवाओं के लिए प्रेरणा है उन्होंने बताया कुछ जानकारी उद्यान विभाग से ली। कुछ इंटरनेट से और केले की खेती करने लगे। हम खेतों में जीवामृत धन, जीवामृत गो कृपा, अमृत जल, वेस्ट डी कंपोजर आदि का ही प्रयोग करते हैं।

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