Even my Munsif was helpless
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भाषा-साहित्य
हस्र पर मेरे मुंसिफ भी लाचार थे – अशोक ‘अश्क’
जुर्म कोई नहीं पर गुनहगार थे हस्र पर मेरे मुंसिफ भी लाचार थे बेख़बर खोई थी वो चकाचौंध में बोलियाँ…
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जुर्म कोई नहीं पर गुनहगार थे हस्र पर मेरे मुंसिफ भी लाचार थे बेख़बर खोई थी वो चकाचौंध में बोलियाँ…
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