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The Family Man 3 Review: मज़ेदार वापसी और उलझन भरा अंत

The Family Man 3 Review: मज़ेदार वापसी, दमदार एक्टिंग और उलझन भरा अंत

The Family Man 3 Review : लंबे इंतजार के बाद ‘द फैमिली मैन’ अपने तीसरे सीजन के साथ डिजिटल स्क्रीन पर लौट आया है। श्रीकांत तिवारी और जे.के. की दोस्ती—या कहें, तकरार—हमेशा इस फ्रेंचाइज़ी की जान रही है। लेकिन इस बार कहानी का दायरा बढ़ा है, स्केल बड़ा हुआ है और स्टारकास्ट भी। हर रंग भरा गया, बस अंत में वो रंग फीका पड़ जाता है जिसे देखकर दर्शक ठहर जाएं। इस सीजन की खासियत मनोज बाजपेयी की रिटर्न या राज–डीके का ट्रीटमेंट नहीं, बल्कि उन सभी के बीच जयदीप अहलावत का अप्रत्याशित और विस्फोटक योगदान है, जो तीसरे अध्याय को नई दिशा देता है।

कहानी: कई ट्रैक, कई मोड़… और थोड़ा भारीपन

सीजन 3 की कहानी कई लेयर्स में बुनी गई है। एक तरफ श्रीकांत की निजी जिंदगी की उलझनें हैं—अब परिवार को उनके असली काम का पता है और घर के रिश्तों में एक नई नाजुकता घुल गई है। दूसरी तरफ नॉर्थ ईस्ट—खासतौर पर नागालैंड के कोहिमा—में फैला ड्रग नेटवर्क, जिसके जरिए सीरीज एक बिलकुल अलग भू-राजनीतिक ज़ोन में प्रवेश करती है।
इसी के समानांतर रुकमा (जयदीप अहलावत) का सशक्त, रहस्यमय और मनोवैज्ञानिक स्तर पर गढ़ा गया किरदार चलता है। फिर मीरा (निमरत कौर) का पूरा एंगल, जो भावनात्मक खिंचाव भी लाता है और कहानी को नए मोड़ भी देता है। इसके ऊपर देश की राजनीति और इंटेलिजेंस एजेंसियों की अंदरूनी चालें।

समस्या यही है—बहुत कुछ हो रहा है, और सब एक साथ हो रहा है।
कुछ हिस्से बेहद मजबूत हैं—जैसे श्रीकांत का पारिवारिक सच सामने आने वाला ट्रैक या रुकमा से जुड़े दृश्य। पर कई जगह कहानी एकदम ठहर जाती है, मानो लेखक खुद तय नहीं कर पा रहे कि किस धागे को पहले खींचें।

सीरीज की शुरुआत तेज है, मजेदार है, भावनात्मक है—लेकिन बीच में मेलोड्रामा और धीमी रफ्तार उस टेंशन को कम कर देती है जो फैमिली मैन की पहचान है।
सबसे ज़्यादा निराश करती है फिनाले—जहाँ दर्शक जवाब की जगह अधूरापन लेकर उठते हैं। ऐसा लगता है कि 6 घंटे की यात्रा हमें किसी निर्णायक पड़ाव तक न ले जाकर बस अगले सीजन की तैयारी में छोड़ देती है।

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मनोज बाजपेयी: श्रीकांत की दुनिया फिर से जीवंत

मनोज बाजपेयी हर बार की तरह इस बार भी शो की रीढ़ हैं।
• जे.के. के साथ उनकी कॉमिक टाइमिंग फिर वही पुरानी अनगढ़, देसी और मजेदार केमिस्ट्री पैदा करती है।
• परिवार के सीनों में उनका भावनात्मक लहजा बहुत स्वाभाविक लगता है।
• एक जिम्मेदार पिता, उलझा पति, और ‘जोखिम लेकर भी सही करने वाला’ एजेंट—श्रीकांत का यह तीन-रूपीय संघर्ष उन्हें आज भी इस किरदार के साथ पूरी तरह जोड़ देता है।

शारिब हाशमी (जे.के.) श्रीकांत के ‘सर्किट’ हैं—यह तुलना एक बार और सटीक लगती है। दोनों की उपस्थिति ही शो को अपनी मूल पहचान देती है, और यह सीजन इसमें भी सफल है।

जयदीप अहलावत: इस सीजन का सबसे चमकदार चेहरा

इस बार जिस व्यक्तित्व ने सारी रोशनी अपनी ओर खींच ली है, वह हैं जयदीप अहलावत
रुकमा के रूप में उनका अभिनय—उनका बोलने का अंदाज, उनके शांत रहने पर भी पैदा होने वाला तनाव, उनका धीमा-सा बदलता भाव—हर फ्रेम में भारी पड़ता है।
वो ऐसे अभिनेता हैं जो एक साधारण ब्रीदिंग पैटर्न से भी दृश्य का माहौल बदल सकते हैं। यहाँ भी उन्होंने वही किया है—सीन छोटा हो या बड़ा, उनका प्रभाव टिक जाता है।

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यह साफ दिखता है कि मेकर्स उन्हें चौथे सीजन के लिए बहुत बड़े प्लॉट के रूप में देख रहे हैं, और इस सीजन में उनकी एंट्री उसी की भूमिका है। यह प्रयोग सफल है—और शायद तीसरे सीजन का सबसे मजबूत हिस्सा भी।

महिला किरदार: सीमित जगह, मजबूत प्रभाव

प्रियामणी हमेशा की तरह सहज और प्रभावशाली हैं। उनकी भूमिका भले बहुत विस्तार नहीं पाती, पर कहानी में जरूरी संतुलन लाती है।
निमरत कौर का एंट्री ट्रैक नया है, और वह उसे गरिमा तथा संवेदनशीलता के साथ निभाती हैं। इतना बड़ा कलाकारों का जमावड़ा हो, फिर भी वह अपनी पहचान छोड़ने में सफल रहती हैं।

निर्देशन: राज–डीके की सिनेमैटिक पकड़ मजबूत, कहानी कमजोर

राज और डीके की सबसे बड़ी ताकत उनका विजुअल उपचार है—यह सीजन भी उसका उदाहरण है।
• नॉर्थ ईस्ट की प्राकृतिक सुंदरता का जिस तरह उपयोग किया गया है, वह शानदार है।
• कई एक्शन सीक्वेंस और बातचीत वाले सीन भी उनकी शैली की पहचान लिए हुए हैं।
• सिनेमैटोग्राफी पर खूब मेहनत दिखती है—फ्रेम खूबसूरत, लोकेशन बड़े, और ट्रीटमेंट अलग।

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लेकिन कमजोर कड़ी सिर्फ एक है—कहानी का संतुलन।
बहुत सारे प्लॉट एक साथ चलते हुए कई बार दर्शक को भावनात्मक रूप से जोड़ नहीं पाते।
और सबसे ज्यादा निराशाजनक बात—सीरीज को इस तरह खत्म करना कि दर्शक को लगता है कि उनकी जिज्ञासा का इस्तेमाल सिर्फ अगले सीजन के ‘हुक’ के लिए किया गया है।
यह तरीका मनोरंजन वाले फॉर्मेट में ठीक है, लेकिन फैमिली मैन की प्रामाणिकता इससे थोड़ी कमजोर पड़ती है।

तकनीकी पक्ष: हमेशा की तरह शानदार

फैमिली मैन हमेशा तकनीकी रूप से मजबूत रहा है—और यह सीजन भी उसी परंपरा को आगे बढ़ाता है।
• एक्शन सींस खूबसूरती से डिजाइन किए गए हैं
• बैकग्राउंड म्यूजिक तनाव और मज़े दोनों क्रिएट करता है
• कहीं भी तकनीक कहानी को नीचे नहीं आने देती

तकनीकी स्तर पर यह सीरीज भारतीय कंटेंट की टॉप लिस्ट में बनी रहती है।

देखें या नहीं?

यदि आप ‘फैमिली मैन’ सीरीज के पुराने फैन हैं, तो यह सीजन तो आपकी वॉचलिस्ट में पहले से शामिल ही होगा।
मनोज बाजपेयी और जयदीप अहलावत का काम इस सीजन को देखने की एक बड़ी वजह है।
हालांकि, कहानी का अंत आपको अधूरा, थोड़ा टूटा और शायद थोड़ा नाराज़ भी छोड़ देगा।
यदि आप मजबूत फिनाले की उम्मीद लेकर देखेंगे, तो निराशा तय है—पर अगर यात्रा का आनंद लेना चाहते हैं, तो यह सीजन आपको निराश नहीं करेगा।

Gaam Ghar Desk

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