बिहार की राजनीति का बदलता परिदृश्य : बिहार की राजनीति हमेशा से जातीय समीकरणों और सामाजिक वर्गों के संतुलन पर आधारित रही है। ‘एमवाई समीकरण’ यानी मुस्लिम-यादव गठजोड़ राजद (राष्ट्रीय जनता दल) की पहचान रहा है, जबकि ‘अति पिछड़ा और सवर्ण समीकरण’ नीतीश कुमार की जेडीयू और भाजपा गठबंधन की ताकत रही है। लेकिन 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव ने अपने पुराने समीकरण में नई परतें जोड़नी शुरू कर दी हैं। मंगनी लाल मंडल को बिहार आरजेडी अध्यक्ष बनाए जाने की घोषणा और मुकेश सहनी को विशेष तवज्जो उसी नई सियासी योजना का हिस्सा हैं, जो नीतीश के ‘पिछड़ा प्लस अति पिछड़ा’ समीकरण को तोड़ने की कोशिश है।
मंगनी लाल मंडल की ताजपोशी: प्रतीक से परे रणनीति
मंगनी लाल मंडल का नाम आते ही बिहार की राजनीति में समाजवादी आंदोलन, मंडल आयोग, और लालू-नीतीश की शुरुआती राजनीति की झलक मिलती है। वे न सिर्फ़ धानुक जाति (अति पिछड़ा वर्ग) के वरिष्ठ नेता हैं, बल्कि उन्होंने लंबे समय तक विधान परिषद, राज्यसभा, और लोकसभा में जनप्रतिनिधित्व किया है।
- 1986 से 2004 तक बिहार विधान परिषद के सदस्य रहे।
- 2004 से 2009 तक आरजेडी से राज्यसभा सांसद।
- 2009 से 2014 तक जेडीयू से मधुबनी लोकसभा सांसद।
राजनीतिक सूझबूझ और संगठन कौशल के कारण उन्हें लालू-नीतीश दोनों का विश्वास प्राप्त रहा। लेकिन 2024 में जेडीयू द्वारा टिकट न दिए जाने के बाद उन्होंने आरजेडी में वापसी की। उनकी वापसी को सिर्फ राजनीतिक ‘घर वापसी’ नहीं बल्कि रणनीतिक वापसी माना जा रहा है।
एमवाई प्लस समीकरण की नई परिभाषा
राजद हमेशा से एमवाई (मुस्लिम + यादव) वोट बैंक पर आधारित रहा है, जो लगभग 30% के आसपास बैठता है। परंतु, बदलते चुनावी परिदृश्य में यह समीकरण अब चुनाव जिताऊ नहीं रह गया है। इसलिए तेजस्वी यादव ने अब इस समीकरण में ‘अति पिछड़ा वर्ग’ को जोड़ने की ठानी है। यह वर्ग बिहार की आबादी का लगभग 36% है।
- मंगनी लाल मंडल, जो धानुक (अति पिछड़ा) समाज से आते हैं, इस समीकरण को मजबूती प्रदान करेंगे।
- मुकेश सहनी, जो मल्लाह (निषाद) समाज से हैं, अति पिछड़े वोटों के एक बड़े हिस्से को प्रभावित करते हैं।
इस तरह राजद एमवाई + अतिपिछड़ा (36%) = 65-66% वोट टार्गेट कर रहा है, जो किसी भी दल के लिए बहुमत का सीधा रास्ता हो सकता है।
नीतीश कुमार के ‘अति पिछड़ा गोल’ पर सेंध
नीतीश कुमार की राजनीति शुरू से ही कुर्मी-कुशवाहा-धानुक-निषाद वर्गों को साथ लेकर चली है। ‘अति पिछड़ा आयोग’ और ‘महादलित पैकेज’ उनके मजबूत हथियार रहे हैं। लेकिन अब उन्हीं वर्गों से आने वाले चेहरे राजद की ओर झुक रहे हैं।
- धानुक समाज के मंगनी लाल मंडल को आरजेडी अध्यक्ष बनाना नीतीश के पुराने ‘समर्थक आधार’ में सेंधमारी है।
- निषाद समाज के मुकेश सहनी को उपमुख्यमंत्री जैसी पद की संभावना देकर तेजस्वी ने बड़ा दांव खेला है।
यह सीधा नीतीश के core base को तोड़ने की कोशिश है, जिसकी नींव पर उन्होंने पिछले दो दशक राजनीति चलाई।
मल्लाह/निषाद वोट: आंकड़ों का खेल और हकीकत
मुकेश सहनी बार-बार दावा करते हैं कि मल्लाह वोट बैंक 14% का है, जबकि जातीय गणना 2023 के अनुसार यह आंकड़ा 2.6% है। परंतु यह भ्रम नहीं बल्कि ‘सामूहिक उपजाति प्रभाव’ का खेल है।
- मल्लाहों की 15 से अधिक उपजातियाँ हैं: केवट, निषाद, बिंद, कहार, धीवर आदि।
- इन सभी को मिलाकर वास्तविक आंकड़ा 8-9% तक पहुंचता है।
यह वोट बैंक न केवल सीमांचल बल्कि कोसी, मिथिला और उत्तर बिहार के इलाकों में निर्णायक भूमिका निभाता है।
सामाजिक संदेश और प्रतीकवाद
मंगनी लाल मंडल को पार्टी अध्यक्ष बनाना सिर्फ़ जातीय समीकरण का हिस्सा नहीं है, बल्कि यह राजद का सामाजिक न्याय और समाजवाद की पुरानी राजनीति में लौटने का संकेत भी है।
- कर्पूरी ठाकुर के अनुयायी रहे मंगनी लाल मंडल की छवि ‘गरीब से करोड़पति’ की है।
- उनके पिता मजदूर थे, उन्होंने संघर्षों से राजनीति में ऊँचाई पाई, यह प्रेरक कथा आम मतदाता के मन को छूती है।
- तेजस्वी यादव का यह कदम उन्हें पुराने सामाजिक न्याय आंदोलन के वारिस के रूप में पेश करता है।
करोड़पति लेकिन ज़मीन से जुड़ा चेहरा
2014 में दाखिल हलफनामे के अनुसार मंगनी लाल मंडल के पास 7.7 करोड़ रुपए की संपत्ति थी। इसमें शामिल थे:
- 4 एकड़ कृषि भूमि (मधुबनी में)
- 30 लाख की आवासीय इमारत (मधुबनी)
- 6 लाख का मकान (पटना)
- नकद, गहने, और अन्य चल संपत्तियाँ।
11 साल बीत जाने के कारण उनकी संपत्ति में स्वाभाविक रूप से वृद्धि मानी जा रही है। हालांकि उन्होंने हमेशा सादगीपूर्ण जीवन और ज़मीनी कार्यशैली बनाए रखी।
आरजेडी की लोकसभा रणनीति और विधानसभा की तैयारी
2024 के लोकसभा चुनाव में आरजेडी ने शाहाबाद, मगध और सीमांचल में सामाजिक समीकरण साध कर एनडीए को कई क्षेत्रों में कड़ी चुनौती दी। अब 2025 के विधानसभा चुनाव में राजद:
- यादव + मुस्लिम + अति पिछड़ा = महागठबंधन का वोट टार्गेट
- सीटों का बंटवारा इसी समीकरण पर आधारित होगा।
- राजद के साथ कांग्रेस, लेफ्ट पार्टियां, और संभवतः कुछ स्वतंत्र दल (वीआईपी समेत) भी होंगे।
नीतीश और भाजपा के लिए चुनौती
नीतीश कुमार अब भाजपा के साथ हैं, परंतु उनकी विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लग चुका है:
- बार-बार पाला बदलने की छवि
- उम्र और स्वास्थ्य को लेकर चिंता
- भाजपा की जातीय रणनीति अभी असमंजस में
ऐसे में मंगनी लाल मंडल और मुकेश सहनी की भूमिका निर्णायक होगी।
सियासत के इस मोड़ पर बदलाव की आहट
राजनीति सिर्फ आंकड़ों और चेहरों का खेल नहीं होती; यह संकेतों, प्रतीकों और संवेदनाओं का भी मैदान होती है। मंगनी लाल मंडल की वापसी और अध्यक्ष पद पर नियुक्ति इस बात का संकेत है कि तेजस्वी यादव 2025 में बिहार की सत्ता के लिए सामाजिक न्याय के विस्तारित संस्करण को अपनाना चाहते हैं, जिसमें न केवल यादव और मुस्लिम होंगे, बल्कि अति पिछड़े, धानुक, मल्लाह, दलित, महिलाएं और युवा भी शामिल होंगे।
लालू प्रसाद यादव के अनुभव और तेजस्वी यादव की ऊर्जा जब मंगनी लाल मंडल जैसे संगठनात्मक स्तंभों के साथ जुड़ती है, तब सत्ता परिवर्तन की पटकथा लिखी जाती है।