
योग का शाब्दिक अर्थ जोड़ होता है। जैसे-जैसे साधक साधना के मार्ग में आगे बढ़ते जाता है। शरीर शुद्ध होने लगता है। तब आत्मा से परमात्मा का मिलन होता है। जो साधक योग में दक्षता प्राप्त करना चाहता है। उसे अनुशासन पूर्वक यम नियम का पालन करना पड़ता है। दिनचर्या में बदलाव लाना पड़ता है। सुबह सूर्योदय से पहले उठना होता है और देर रात्रि के भोजन का परित्याग करना पड़ता है। आज जब साधक से पूछा गया कि आप लोग इतने दिन से अभ्यास कर रहे हैं। आप को क्या लाभ मिला। सभी ने एक स्वर में कहा कि लाभ के बारे में वर्णन करना असंभव है किन्तु सरल शब्दो मे अद्भुत लाभ मिला है। सबको आश्चर्यजनक लाभ मिला। उठने बैठने का तकलीफ गायब हो गया। साथ ही आलस जो भरा पड़ा था।
वह सब दूर हो गया।अब शरीर में अद्भुत स्फूर्ति महसूस कर रहे हैं। तनाव दूर हो गया है।मन बिल्कुल निर्मल पवित्र जैसा लग रहा है।शिविर में अब काफी लोग जुड़ने लगे हैं। पूर्व शिक्षक अरुण कुमार झा, पूर्व प्रधानाध्यापक सरोज कुमार मिश्र ,अधिवक्ता अरुण कुमार झा, प्रदीप झा, श्यामल झा, रंजीत झा, नवीन कुमार झा, राजेश कुमार झा ,अनिल कुमार झा, महादेव ठाकुर, रंजीत झा, वरुण कुमार झा,योग के नेशनल विजेता जयभद्र मिश्र सहित काफी संख्या में लोग नियमित रूप से योग कर रहे है।