Bihar Politics News : समाजवादी नेता रामविलास पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) में हुई टूट और सत्ता के समीकरण बदलने के बाद उनके भाई पशुपति कुमार पारस की राजनीतिक स्थिति लगातार कमजोर होती दिख रही है। एनडीए से जुड़ी गतिविधियों और बैठकों में अब उनकी पार्टी राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (रालोजपा) को शामिल नहीं किया जा रहा है। सोमवार को पटना में हुई एनडीए नेताओं की प्रेस वार्ता में भी रालोजपा को नजरअंदाज किया गया।
एनडीए से बाहर रालोजपा?
पटना में एनडीए की संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में पांच दलों के प्रदेश अध्यक्ष शामिल हुए। इसमें भाजपा के दिलीप जायसवाल, जदयू के उमेश सिंह कुशवाहा, लोजपा (रामविलास) के राजू तिवारी, हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) के अनिल कुमार और राष्ट्रीय लोक मोर्चा (रालोमो) के मदन चौधरी मौजूद थे। हालांकि, रालोजपा का कोई प्रतिनिधि इसमें नहीं था। यह संकेत देता है कि एनडीए में रालोजपा की जगह अब खत्म हो चुकी है।
लोकसभा चुनाव में चिराग पासवान की पार्टी लोजपा (रामविलास) ने एनडीए के तहत पांच सीटें जीतकर जोरदार वापसी की। इसके बाद से पशुपति पारस की स्थिति लगातार कमजोर हो रही है। जब एनडीए के नेताओं ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मुलाकात की थी, तब भी रालोजपा का कोई नेता शामिल नहीं हुआ।
सोशल मीडिया से ‘मोदी का परिवार’ गायब
पशुपति पारस ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट से एक बार फिर ‘मोदी का परिवार’ हटा दिया है। इससे पहले, लोकसभा चुनाव में जब उनकी पार्टी को एक भी सीट नहीं दी गई थी, तब भी उन्होंने ऐसा किया था। भाजपा नेताओं के समझाने के बाद उन्होंने इसे फिर से जोड़ा था। अब दोबारा इसे हटाना यह साफ करता है कि रालोजपा और एनडीए के संबंध खत्म हो चुके हैं।
चिराग का बयान और रालोजपा की तैयारी
चिराग पासवान ने हाल ही में कहा था, “पशुपति पारस एनडीए में हैं कहां, जो वे छोड़ने की बात कर रहे हैं।” इससे यह स्पष्ट हो गया कि चिराग अब खुद को एनडीए का प्रमुख दल मानते हैं। दूसरी ओर, रालोजपा ने अपनी अलग रणनीति बनाने के संकेत दिए हैं। पार्टी की हालिया बैठक में 243 विधानसभा सीटों पर तैयारी की बात कही गई। यह स्पष्ट करता है कि रालोजपा अब भाजपा और एनडीए से अलग राह पर है।
एनडीए का नया अभियान और रणनीति
चार उपचुनावों में सभी सीटें जीतने के बाद एनडीए उत्साहित है। सोमवार की प्रेस वार्ता में एनडीए नेताओं ने 2025 के विधानसभा चुनावों के लिए रणनीति पेश की। 15 जनवरी से 15 फरवरी तक पूरे बिहार में एनडीए का संयुक्त कार्यक्रम चलाया जाएगा। इसकी शुरुआत बगहा से होगी।
कार्यक्रम के तहत एनडीए गांव-गांव जाकर “2005 के पहले का बिहार” और “2005 के बाद का बिहार” विषय पर आधे घंटे की फिल्म दिखाएगा। इस फिल्म में लालू यादव के कार्यकाल (1990-2005) की तुलना नीतीश कुमार के शासन से की जाएगी। इसके जरिए राज्य में 2005 से पहले की अव्यवस्था और 2005 के बाद के विकास को उजागर करने की रणनीति बनाई गई है।
रालोजपा का अलगाव और एनडीए में समीकरण
रालोजपा के एनडीए से अलग होने की स्थिति में अब गठबंधन में पांच प्रमुख पार्टियां हैं—भाजपा, जदयू, लोजपा (रामविलास), हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (हम), और राष्ट्रीय लोक मोर्चा (रालोमो)। एनडीए का जोर कार्यकर्ताओं को बूथ स्तर तक सक्रिय करने और समन्वय स्थापित करने पर है।
राजनीतिक दफ्तर का विवाद
पारस और चिराग के बीच मतभेद पार्टी के राजनीतिक कार्यालय तक पहुंच चुके हैं। रामविलास पासवान के जमाने का लोजपा दफ्तर, जो अब तक पारस के कब्जे में था, उसे सरकार ने खाली कराकर चिराग की पार्टी को सौंप दिया है।
भविष्य की राजनीति
पशुपति पारस और रालोजपा की एनडीए से विदाई का आधिकारिक ऐलान भले ही अभी बाकी हो, लेकिन राजनीतिक घटनाक्रम इसकी पुष्टि कर रहा है। 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले एनडीए बिहार में अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश कर रहा है। ऐसे में पारस और उनकी पार्टी की कमजोर होती स्थिति उनके लिए नई राजनीतिक चुनौतियां खड़ी कर सकती है।
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