बिहार की नई एनडीए सरकार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ शपथ लेने वाले 26 मंत्रियों में से 10 का सीधा संबंध राजनीतिक परिवारों से है। यानी लगभग 40% मंत्री ऐसे हैं, जिन्होंने राजनीति में अपने पिता या पति की विरासत के सहारे कदम बढ़ाया है। दिलचस्प यह है कि इन मंत्रियों में भाजपा, जदयू, हम और रालोमो—चारों दलों से परिवारवादी चेहरे शामिल हैं। कई मंत्री पहली बार पद पर आए हैं, जबकि कुछ पहले भी राज्य सरकार में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ संभाल चुके हैं।
नई कैबिनेट में ऐसे नेताओं की चर्चा तेज है जो सियासत में खुद की जगह बनाने से पहले घर की राजनीतिक विरासत का लाभ उठाकर आगे बढ़ते रहे। राजपूत, कुशवाहा, भूमिहार, निषाद और कई अन्य सामाजिक वर्गों से आने वाले इन नेताओं में कई राजनीतिक रूप से अनुभवी हैं, तो वहीं कुछ बिल्कुल नए हैं जिन्हें पहली बार मंत्री बनने का अवसर मिला है।
सम्राट चौधरी – पिता की विरासत का मजबूत असर
नई सरकार में उपमुख्यमंत्री पद संभाल रहे सम्राट चौधरी राजनीतिक विरासत से सबसे अधिक जुड़े चेहरे माने जाते हैं। उनके पिता शकुनी चौधरी कांग्रेस, समता पार्टी और आरजेडी जैसी पार्टियों में रहकर 6 बार विधायक और एक बार मंत्री रह चुके हैं। तारापुर सीट से सम्राट चौधरी विधायक बने हैं, जहाँ से उनके पिता लगातार चुनाव जीतते रहे। सम्राट खुद भी राबड़ी देवी सरकार में राजद के मंत्री रह चुके हैं।
विजय कुमार चौधरी – तीन पीढ़ियों की राजनीति
जदयू के वरिष्ठ नेता और मंत्री विजय चौधरी के पिता जगदीश प्रसाद चौधरी कांग्रेस के दिग्गज नेता थे और दलसिंहसराय के तीन बार विधायक रहे। पिता के निधन के बाद विजय चौधरी ने उपचुनाव जीतकर राजनीति में एंट्री की और बाद में वे नीतीश कुमार के भरोसेमंद सहयोगी बन गए। वे कई विभागों के मंत्री रह चुके हैं और सरकार चलाने का व्यापक अनुभव रखते हैं।
अशोक चौधरी – कांग्रेस की जड़ों से जदयू का मजबूत चेहरा
जदयू मंत्री अशोक चौधरी के पिता महावीर चौधरी बिहार सरकार में कांग्रेस के मंत्री थे। अशोक ने भी कांग्रेस से राजनीति शुरू की और बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। बाद में वे जदयू में शामिल होकर नीतीश सरकार का महत्वपूर्ण हिस्सा बने। खास बात यह है कि अशोक की बेटी शांभवी चौधरी वर्तमान में समस्तीपुर से लोजपा (रामविलास) की सांसद हैं, जिससे यह परिवार तीन पीढ़ियों तक राजनीति में सक्रिय है।
संतोष सुमन – पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी के बेटे
हम पार्टी कोटे से मंत्री संतोष कुमार सुमन पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी के बेटे हैं। मांझी के मुख्यमंत्री रहते हुए और उसके बाद भी परिवार राजनीति में प्रभावशाली रहा है। संतोष स्वयं हम पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। मांझी परिवार की तीन महिलाएँ—जीतनराम मांझी की बहू दीपा और समधन ज्योति कुमारी—भी हम से विधायक हैं।
दीपक प्रकाश – उपेंद्र कुशवाहा की राजनीतिक विरासत
आरएलएम के कोटे से पहली बार मंत्री बने दीपक प्रकाश राष्ट्रीय लोक मोर्चा प्रमुख और पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा के बेटे हैं। सासाराम से उनकी मां स्नेहलता विधायक हैं, यानी पूरा परिवार सक्रिय राजनीति में है।
नितिन नबीन – पिता की सीट और राजनीति दोनों विरासत
भाजपा मंत्री नितिन नबीन के पिता नवीन किशोर प्रसाद सिन्हा पटना पश्चिम से 4 बार भाजपा विधायक रहे। 2008 में सीट का नाम बदलकर बांकीपुर कर दिया गया, लेकिन क्षेत्र में प्रभाव नितिन नबीन ने उसी तरह बनाए रखा और लगातार चुनाव जीतते रहे। वे भाजपा का युवा और प्रभावी चेहरा माने जाते हैं।
सुनील कुमार – राजनेता पिता की छाया में पूर्व आईपीएस अधिकारी
जदयू कोटे से मंत्री बने पूर्व आईपीएस सुनील कुमार के पिता चंद्रिका राम स्वतंत्रता सेनानी और बिहार सरकार में मंत्री रहे थे। सुनील कुमार ने पुलिस सेवा से सेवानिवृत्ति के बाद राजनीति में प्रवेश किया और अब मंत्री बनकर प्रशासनिक अनुभव को राजनीतिक भूमिका में ला रहे हैं।
श्रेयसी सिंह – खेल जगत से राजनीति, पर विरासत ने निभाई बड़ी भूमिका
कॉमनवेल्थ गेम्स की स्वर्ण विजेता और पहली बार कैबिनेट मंत्री बनीं श्रेयसी सिंह के पिता दिग्विजय सिंह केंद्र में मंत्री रह चुके थे। मां पुतुल देवी भी सांसद रहीं। श्रेयसी खेल से राजनीति में आईं, लेकिन राजनीतिक परिवार से होने का लाभ उन्हें मिला।
रमा निषाद – सांसद पति की वजह से मिला राजनीतिक रास्ता
भाजपा कोटे से नई मंत्री बनीं रमा निषाद के पति अजय निषाद मुजफ्फरपुर के सांसद रहे हैं। ससुर कैप्टन जय नारायण निषाद जनता दल, आरजेडी और जदयू—तीनों से सांसद रह चुके और केंद्र में मंत्री भी रहे। यानी निषाद परिवार दशकों से राजनीति में प्रभावशाली रहा है।
लेशी सिंह – पति की हत्या के बाद संभाली राजनीति
जदयू मंत्री लेशी सिंह के पति बूटन सिंह नीतीश कुमार की समता पार्टी में जिले के अध्यक्ष थे। 2000 में उनकी हत्या के बाद लेशी सिंह ने राजनीति संभाली और आज जदयू की प्रमुख महिला चेहरा मानी जाती हैं।
नीतीश कुमार की नई कैबिनेट को सामाजिक समीकरणों के हिसाब से संतुलित माना जा रहा है, लेकिन परिवारवाद का प्रभाव बेहद स्पष्ट है। 26 में से 10 मंत्रियों का राजनीतिक परिवार से होना बताता है कि बिहार की राजनीति में विरासत का असर अभी भी उतना ही मजबूत है। यह सवाल भी फिर उठता है—क्या राजनीति में योग्यता के साथ परिवारिक पहचान बड़ी भूमिका निभा रही है?
नई कैबिनेट के गठन ने यह बहस एक बार फिर तेज कर दी है।



