बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों ने एक बार फिर यह साफ़ कर दिया है कि राज्य की राजनीति में सोशल इंजीनियरिंग, वर्गीय गोलबंदी और जाती-आधारित रणनीति ही चुनावी जीत का मूल आधार हैं। इस बार के चुनाव में एनडीए ने न सिर्फ सीटों के लिहाज़ से भारी सफलता हासिल की, बल्कि जातीय वर्गों की दृष्टि से भी महागठबंधन पर निर्णायक बढ़त बनाई।
आधिकारिक डेटा के मुताबिक, इस बार सबसे ज्यादा सीटें अनुसूचित जाति (SC) वर्ग के उम्मीदवारों ने जीतीं—जिसमें अकेले एनडीए के 34 SC विधायक शामिल हैं। SC के बाद सबसे बड़ा जातीय प्रतिनिधित्व राजपूत, धानुक, कुशवाहा और कुर्मी वर्ग से आया है। यह चारों जातियाँ मिलकर एनडीए की जीत में ‘बैकबोन’ साबित हुईं।
जातीवार सीटों का चार्ट
| जाति | एनडीए | महागठबंधन |
|---|---|---|
| यादव | 15 | 12 |
| कुर्मी | 15 | 1 |
| धानुक | 8 | 1 |
| कुशवाहा | 19 | 3 |
| वैश्य | 23 | 1 |
| राजपूत | 31 | 1 |
| भूमिहार | 22 | 2 |
| ब्राह्मण | 14 | 0 |
| कायस्थ | 2 | 0 |
| अति पिछड़ा | 10 | 1 |
| अनुसूचित जाति | 34 | 4 |
| आदिवासी | 1 | 1 |
| मुसलमान | 1 | 5 |
एनडीए की सोशल इंजीनियरिंग हुई सफल, महागठबंधन की जातीय गोलबंदी टूटी
एनडीए की यह बढ़त सिर्फ संयोग नहीं, बल्कि उसकी सोशल इंजीनियरिंग रणनीति का ठोस परिणाम मानी जा रही है।
जदयू का पारंपरिक “लव–कुश” (कोइरी–धानुक–कुर्मी) गठजोड़ इस बार पूरी तरह एकजुट रहा। भाजपा के साथ मिलकर इस वोट बैंक को बूथ स्तर पर मजबूती से सक्रिय किया गया।
इसके अलावा—
- वैश्य समुदाय का वोट लगभग पूरी तरह एनडीए के साथ रहा।
- स्वर्ण वोटों (राजपूत, भूमिहार, ब्राह्मण) ने इस बार एकमुश्त NDA के पक्ष में लाइन बनाई।
- एनडीए ने छोटी-छोटी जनसंख्या वाली जातीय समूहों—बिंद, नोनिया, तेली, कहार, कोरी आदि—को भी अपने साथ समेटे रखा।
इन जातीय समीकरणों का लाभ भाजपा-जदयू गठबंधन को निर्णायक रूप से मिलता दिखा।
SC वोट पूरी तरह एनडीए के साथ—सबसे बड़ी मजबूती
इस चुनाव में सबसे ज्यादा विधायक SC वर्ग से चुने गए—कुल 38, जिनमें 34 एनडीए और सिर्फ 4 महागठबंधन के हैं।
यह न सिर्फ एनडीए की मजबूत पकड़ का संकेत है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि SC समुदाय ने सरकार के योजनागत लाभों को अपना सीधा फायदा महसूस किया।
गृह राशन, छात्रवृत्ति, आवास योजना, वृद्धापेंशन, स्वास्थ्य बीमा जैसी योजनाओं में लाभ SC समुदाय तक अधिक प्रभावी तरीके से पहुंचा—यही एनडीए की सबसे बड़ी चुनावी ताकत रही।
यादव वोट में दरार—महागठबंधन को बड़ा नुकसान
महागठबंधन की राजनीति दशकों से M–Y (मुस्लिम–यादव) समीकरण पर टिकी रही।
लेकिन इस बार यह पूरा आधार खिसकता दिखा—
यादव वोटों में बंटवारा
यादव उम्मीदवारों में—
- एनडीए: 15
- महागठबंधन: 12
यह आँकड़ा स्पष्ट करता है कि यादव समुदाय का एक बड़ा हिस्सा इस बार एनडीए की तरफ गया है।
खासतौर पर कोसी और पूर्वी बिहार में एनडीए के यादव उम्मीदवार महागठबंधन के यादव कैंडिडेट पर भारी पड़े।
मुस्लिम वोट भी बंटा—ओवैसी फैक्टर मजबूत
सीमांचल में मुस्लिम वोट इस बार पूरी तरह महागठबंधन में नहीं गया।
यह वोट शेयर तीन हिस्सों में बंटा—
- राजद
- कांग्रेस
- AIMIM (ओवैसी)
मुसलमानों के सीट-वाइज आँकड़े बताते हैं—
- एनडीए: 1
- महागठबंधन: 5
हालांकि महागठबंधन को मुस्लिम बहुल सीटों पर बढ़त मिली, लेकिन यह वोट पर्याप्त रूप से एकजुट नहीं रहा।
AIMIM ने कई सीटों पर महागठबंधन को निर्णायक नुकसान पहुँचाया।
ईबीसी (अति–पिछड़ा) पर रहा नीतीश का प्रभाव—कांग्रेस की मेहनत बेअसर
कांग्रेस ने इस बार पिछड़ा और अति-पिछड़ा वोटों को साधने की काफी कोशिश की—
लेकिन यह प्रयास पूरी तरह असफल रहा।
अति-पिछड़ा वर्ग (EBC) लंबे समय से जदयू का पारंपरिक समर्थक रहा है।
इस चुनाव में भी इसका बड़ा हिस्सा नीतीश कुमार के साथ मजबूती से खड़ा रहा।
वीआईपी पार्टी की जातीय राजनीति भी विफल रही—मल्लाह, केवट, बिंद, नोनिया समुदायों ने पार्टी की अपील नहीं मानी और वोट एनडीए को ट्रांसफर कर दिया।
स्वर्ण वोटों का एकमुश्त झुकाव—राजपूत सबसे आगे
इस बार स्वर्ण समाज ने भारी पैमाने पर एनडीए को समर्थन दिया।
स्वर्ण जातियों में सबसे बड़ी संख्या राजपूत समुदाय की जीत की रही—
- राजपूत: एनडीए 31, महागठबंधन 1
भूमिहार और ब्राह्मण समुदाय ने भी लगभग एकतरफा एनडीए के उम्मीदवारों को समर्थन दिया।
जदयू ने सबसे ज्यादा EBC–OBC उम्मीदवार उतारे, सफलता उसी अनुपात में मिली
इस बार टिकट बंटवारे में जदयू ने—
- OBC जैसे कुर्मी
- EBC जैसे धानुक
- छोटी जातियों
को सबसे ज्यादा प्रतिनिधित्व दिया।
परिणामस्वरूप ग्रामीण बेल्ट, कोसी–पूर्व बिहार–सीमांचल के 62 सीटों में से 11 सीटों पर कुशवाहा, 16 पर कुर्मी, 7 पर धानुक समुदाय के उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की।
यही सामाजिक संरचना, एनडीए की जीत की रीढ़ बनी।
महागठबंधन में जातीय बिखराव—माय समीकरण फेल
महागठबंधन ने इस बार पारंपरिक समीकरणों पर भरोसा किया—
- यादव
- मुसलमान
लेकिन इन दोनों ही आधार वोटों में दरार दिखाई दी।
कांग्रेस–राजद–बाम संयोजन पिछड़ों, अति-पिछड़ों और स्वर्ण समुदाय को साथ नहीं ला सका।
यही महागठबंधन की चुनावी हार का सबसे बड़ा कारण माना जा रहा है।
जातीय गणित में भारी, योजनाओं की पहुंच में सफल रहा एनडीए
इन आंकड़ों और जमीनी वोट व्यवहार से यह स्पष्ट हो जाता है कि—
- एनडीए की सोशल इंजीनियरिंग सटीक थी
- नीतीश कुमार की लक्षित योजनाओं का लाभ ज्यादातर समुदायों तक पहुंचा
- भाजपा का कोर वोट + स्वर्ण वर्ग + OBC/EBC मजबूती से साथ रहा
- महागठबंधन जातीय गोलबंदी को बचा नहीं पाया
2025 का चुनाव जातीय दृष्टि से एनडीए की सबसे बड़ी सलाहियत और महागठबंधन की सबसे बड़ी कमजोरी को सामने लाता है।




