मुंबई पर 26 नवंबर 2008 को हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। इन हमलों में 166 लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हुए। हमले की त्रासदी के बाद, यह जरूरी है कि हम उन संस्थागत विफलताओं पर विचार करें, जिन्होंने इस हमले को संभव बनाया। इन गलतियों से सबक लेना और सुरक्षा ढांचे में सुधार करना ही भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने का एकमात्र तरीका है।
1. अग्रिम खुफिया अलर्ट की अनदेखी
26/11 हमले से पहले खुफिया एजेंसियों ने कुल 16 अलर्ट जारी किए थे, जिनमें से अधिकांश ने मुंबई पर संभावित आतंकी हमले की ओर इशारा किया था। 7 अगस्त 2006 को जारी पहली चेतावनी में बताया गया था कि लश्कर-ए-तैयबा समुद्री मार्ग से मुंबई के महत्वपूर्ण ठिकानों पर हमला कर सकता है। इसके बाद अक्टूबर 2008 तक जारी अलर्ट में मुंबई के फाइव-स्टार होटलों और अन्य महत्वपूर्ण ठिकानों पर फिदायीन हमले की संभावना जताई गई थी।
इन चेतावनियों के बावजूद, कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। 2006 में हमला नहीं हुआ, लेकिन इसका मतलब यह नहीं था कि अलर्ट को नजरअंदाज किया जाए। अमेरिका के उदाहरण से यह स्पष्ट होता है कि कैसे अग्रिम खुफिया जानकारी पर कार्रवाई की जानी चाहिए। अप्रैल 2008 में अल-कायदा द्वारा समुद्री मार्ग से संभावित हमले की योजना का पता चलने पर, अमेरिकी गृह सुरक्षा विभाग (डीएचएस) ने “छोटी पोत सुरक्षा रणनीति” तैयार की।
2. तटीय सुरक्षा में विफलता
महाराष्ट्र गृह विभाग ने बॉम्बे पुलिस अधिनियम की धारा 4 के तहत पुलिस की “अधीक्षण” की जिम्मेदारी निभाने में गंभीर चूक की। 1993 के बॉम्बे बम धमाकों के बाद, जिसमें हथियार और गोला-बारूद समुद्री मार्ग से लाए गए थे, तटीय सुरक्षा को मजबूत करने की जरूरत थी। इसके बावजूद, तटरक्षक और नौसेना के साथ प्रभावी समन्वय स्थापित करने के लिए कोई उच्च स्तरीय बैठक आयोजित नहीं की गई।
तटीय सुरक्षा की इस विफलता का खामियाजा 26/11 को भुगतना पड़ा, जब आतंकवादी कराची से भारतीय समुद्र तट पर बिना किसी रुकावट के पहुंच गए। प्रभावी गश्त और निगरानी के अभाव ने इन आतंकियों को मुंबई में घुसने का मौका दिया।
3. खुफिया एजेंसियों के बीच समन्वय की कमी
खुफिया एजेंसियों के पास पर्याप्त जानकारी थी, लेकिन विभिन्न सुरक्षा एजेंसियों के बीच समन्वय की कमी ने इसे बेअसर कर दिया। समय पर साझा की गई जानकारी और उसके आधार पर कार्रवाई से इन हमलों को रोका जा सकता था।
4. पुलिस बल का अपर्याप्त प्रशिक्षण और उपकरण
हमले के दौरान, मुंबई पुलिस ने अदम्य साहस का परिचय दिया, लेकिन उनका प्रशिक्षण और उपकरण आधुनिक आतंकवाद से निपटने के लिए पर्याप्त नहीं थे। हमले के दौरान पुलिस कर्मियों के पास बुलेटप्रूफ जैकेट और स्वचालित हथियारों की कमी थी। इसने आतंकवादियों को अधिक नुकसान पहुंचाने का मौका दिया।
भविष्य के लिए सबक
26/11 हमलों ने दिखाया कि खुफिया जानकारी की अनदेखी और सुरक्षा व्यवस्था में खामियां कितनी घातक साबित हो सकती हैं। हमें निम्नलिखित कदम उठाने की आवश्यकता है:
1. खुफिया जानकारी पर त्वरित कार्रवाई: किसी भी अलर्ट को गंभीरता से लेते हुए त्वरित कदम उठाए जाने चाहिए।
2. तटीय सुरक्षा को मजबूत करना: तटीय क्षेत्रों की निगरानी और गश्त के लिए आधुनिक तकनीक और उपकरणों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
3. सुरक्षा एजेंसियों के बीच समन्वय: खुफिया एजेंसियों और सुरक्षा बलों के बीच जानकारी साझा करने के लिए एक मजबूत तंत्र विकसित करना होगा।
4. पुलिस बल का उन्नयन: पुलिस को अत्याधुनिक उपकरणों और प्रशिक्षण से लैस करना आवश्यक है।
मुंबई पर 26/11 का हमला हमारे सुरक्षा ढांचे की गंभीर खामियों की याद दिलाता है। इन त्रुटियों से सबक लेकर ही हम भविष्य में ऐसे हमलों को रोक सकते हैं।
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