पटना : बिहार की राजधानी पटना के सीबीआई स्पेशल कोर्ट ने 26 साल पुराने फर्जी एनकाउंटर मामले में दरभंगा स्पेशल ब्रांच के डीएसपी मुखलाल पासवान को कठोर आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। यह मामला 1998 में पूर्णिया जिले के बड़हरा थाने के अंतर्गत संतोष कुमार सिंह नामक एक व्यक्ति की हत्या से जुड़ा है, जिसे पुलिस ने एनकाउंटर बताने की कोशिश की थी। कोर्ट ने मंगलवार को यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जिससे एक लंबी कानूनी लड़ाई का अंत हुआ।
फर्जी एनकाउंटर की पृष्ठभूमि
यह घटना 1998 की है, जब पूर्णिया जिले के बड़हरा थाना क्षेत्र के तत्कालीन थानेदार मुखलाल पासवान ने बिहारीगंज थाना क्षेत्र के एक गांव में छापेमारी के दौरान संतोष कुमार सिंह को गोली मारकर हत्या कर दी थी। पुलिस ने इस घटना को एनकाउंटर का नाम देकर इसे दबाने की कोशिश की। पुलिस द्वारा दी गई रिपोर्ट में इसे पुलिस द्वारा आत्मरक्षा में की गई कार्रवाई के रूप में पेश किया गया, लेकिन मृतक के परिवार ने इस घटना को फर्जी एनकाउंटर बताया और न्याय की मांग की।
सीबीआई ने की मामले की जांच
संतोष कुमार सिंह के परिवार की अपील और घटना की गंभीरता को देखते हुए, इस मामले की जांच नई दिल्ली की सीबीआई स्पेशल क्राइम ब्रांच को सौंपी गई। सीबीआई ने अपनी जांच के दौरान इस घटना को फर्जी एनकाउंटर साबित किया और मुखलाल पासवान समेत अन्य पुलिसकर्मियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की। जांच के बाद सीबीआई ने चार्जशीट दाखिल की और पुलिसकर्मियों पर हत्या और सबूतों को छुपाने का आरोप लगाया।
कोर्ट का फैसला
मामले की सुनवाई पटना के सीबीआई स्पेशल कोर्ट में हुई, जहां 45 गवाहों और अन्य सबूतों के आधार पर अदालत ने मुखलाल पासवान और एक अन्य पुलिसकर्मी अरविंद झा को दोषी करार दिया। पिछले महीने 27 सितंबर को कोर्ट ने दोनों पुलिसकर्मियों को आईपीसी की धारा 193 (झूठी गवाही) के तहत दोषी ठहराया था। इसके बाद मंगलवार को कोर्ट ने मुखलाल पासवान को कठोर आजीवन कारावास की सजा सुनाई, साथ ही उन पर तीन लाख एक हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया गया। अरविंद झा को पांच साल की सजा और 50 हजार रुपये जुर्माने की सजा दी गई है।
अन्य आरोपियों को बरी किया गया
इस मामले में शामिल दो अन्य पुलिसकर्मियों, दारोगा संजय कुमार और सिपाही रामप्रकाश ठाकुर, को सबूतों के अभाव में अदालत ने बरी कर दिया। सीबीआई ने इन दोनों के खिलाफ भी आरोप लगाए थे, लेकिन कोर्ट में पर्याप्त सबूत न मिलने के कारण उन्हें दोषमुक्त कर दिया गया।
लोक अभियोजक की दलीलें
सीबीआई स्पेशल क्राइम ब्रांच के विशेष लोक अभियोजक अमरेश कुमार तिवारी ने अदालत से मुखलाल पासवान और अरविंद झा के लिए कड़ी से कड़ी सजा की मांग की थी। अभियोजक ने तर्क दिया कि फर्जी एनकाउंटर जैसी घटनाएं पुलिस की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करती हैं और न्यायिक व्यवस्था को कमजोर करती हैं। तिवारी ने अदालत से अनुरोध किया कि ऐसे मामलों में दोषियों को कठोरतम सजा दी जानी चाहिए, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।
26 साल बाद आया न्याय
इस फैसले के साथ, 26 साल पुराने फर्जी एनकाउंटर मामले में आखिरकार न्याय मिला। मुखलाल पासवान को सजा सुनाए जाने के बाद उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। यह मामला बिहार की न्यायिक व्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ है, क्योंकि पुलिस द्वारा फर्जी एनकाउंटर जैसे गंभीर अपराध में उच्च पदस्थ अधिकारियों को भी सजा दी गई है।