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Holi: पोखर में घोला जाता है रंग; ‘बिहार का वृंदावन’

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने भिरहा के होली देख कहा था 'बिहार का वृंदावन'

Story Highlights
  • बिहार का वृंदावन

Holi: समस्तीपुर जिले के रोसड़ा प्रखंड में स्थित भिरहा (Bhiraha) गांव में होली का उत्सव विशेष रूप से ब्रज की होली की तरह ही मनाई जाती है। यहाँ के लोग होली के दिन पोखर में रंग घोलते हैं और फिर एक दूसरे को रंगों से भरी बाल्टियों और लोटों से खेलते हैं। यहाँ पर होली का उत्सव बहुत ही उत्साहजनक और रंगीन होता है। लोग इस अवसर पर एक-दूसरे पर रंग फेकते हैं, खुशिया इस उत्सव में महसूस किया जाता है। यहाँ पर होली का उत्सव बहुत ही प्रसिद्ध है और लोग इसे बड़े ही उत्साह और जोश के साथ मनाते हैं। समस्तीपुर के भिरहा की होली ब्रज (Braj) की होली (Holi) की तरह ही पूरे देश में प्रसिद्ध है, कभी राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने भिरहा के होली देख कहा था ‘बिहार का वृंदावन’ इस अद्वितीय परंपरा के बारे में कहा जाता है कि यह गांव में पिछले 85 सालों से चली आ रही है।

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1935 में, भिरहा गांव के कई लोग वृंदावन (Vrindavan) गए थे और वहाँ ब्रज की होली देखा और उन्हें प्रभावित किया। उनको इतना प्रभावित किया कि वे वापस आकर अपने गांव में भी उसी तरह का होली का आयोजन करने का निर्णय लिया। इसके बाद 1936 से होली का यह अद्वितीय परंपरा चली आ रही है।

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हालांकि, 1941 में गांव को तीन भागों में बांट दिया गया था – पुरवारी टोल, पछियारी टोल और उतरवारी टोला। तब से हर टोला अलग-अलग होली के आयोजन करने लगे। इस प्रकार, भिरहा गांव में होली का यह अनूठा आयोजन भारतीय सांस्कृतिक विरासत का अभिन्न हिस्सा बन गया है, जो इस क्षेत्र को बिहार का वृंदावन कहा जाने लगा।

तीनों टोले के बैंडों के बीच कंपीटिशन
यहाँ कि कंपीटिशन गांव की सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन में महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यहाँ लोगों के बीच एक प्रतिस्पर्धी और उत्साही माहौल बनाता है। इसके अलावा, इस कंपीटिशन से गांव का नाम और पहचान बढ़ती है, जिससे स्थानीय लोग गर्व भी महसूस करते है। इस प्रतिस्पर्धा में जीतने वाले बैंड और नृत्य प्रतियोगिता में योगदान करने वाले लोगों को सम्मान और प्रतिष्ठा का अनुभव होता है। इससे सामाजिक संबंध और एकता में भी सुधार होता है, क्योंकि लोग एक साथ मिलकर इस कंपीटिशन में भाग लेते हैं और एक-दूसरे का साथ देते हैं।

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यह सुनहरा पर्व पोखर में रंग घोल होली जोर-शोर से मनाया जाता है और लोग इसे बड़े ही उत्साह और जोश से मनाते हैं। तीनों टोलों के बैंडों के बीच होली के मंदार का संघर्ष होता है, जिसमें लोग उन्नतिशील प्रस्तुति के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं। और डांस पार्टी में भी बनारस मुजफ्फरपुर और देश के अलग अलग जगह से आने वाले कलाकारों की रौनक होती है।

फगुआ पोखर में घोला जाता है रंग
फगुआ पोखर में रंग का उत्सव सबको आत्मीयता और खुशियों से भर देता है। यहां लोग पोखर में घोला हुआ रंग से खुद को रंगते हैं, और फिर एक दूसरे पर रंग फेकते हैं। इस उत्सव के दौरान, गांव की सड़कें, चौराहे और घरों के आसपास में यहां के लोग आपस में मिलकर खुशियों बाटते हैं।

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भिरहा के इस अनूठे पर्व का जादू अपार है और इसे देखने के लिए लोग अलग-अलग कोनों से आते हैं। यहां की होली ब्रज की होली की भावना और उत्साह को महसूस कराती है, जो इसे और भी खास बनाता है।

Gaam Ghar News Desk

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