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दक्षिण अफ़्रीका हार के बाद गंभीर पर सवाल, गावस्कर बोले बचाव में

दक्षिण अफ़्रीका से करारी हार के बाद पूर्व खिलाड़ियों की प्रतिक्रियाएँ — गौतम गंभीर पर उठ रहे सवाल और उनके बचाव में सुनील गावस्कर

खेल : दक्षिण अफ़्रीका के साथ दो टेस्ट मैचों की सीरीज़ में भारत का 2-0 से करारा हार और गुवाहाटी टेस्ट में मिली 408 रनों की बड़ी शिकस्त ने भारतीय क्रिकेट पटल पर न केवल खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर प्रश्नचिह्न लगा दिए हैं बल्कि टीम के हेड कोच गौतम गंभीर के चुनावी निर्णयों और रणनीतियों पर भी तीखी बहस छिड़ गई है। इस हार के बाद पूर्व और वर्तमान क्रिकेट माहिरों की प्रतिक्रियाएँ मिश्रित रहीं — कुछ ने सख्त निराशा जताई तो कुछ ने कोच का बचाव किया।

सबसे पहले परिणाम की रूपरेखा स्पष्ट कर दें: गुवाहाटी के दूसरे टेस्ट में भारतीय बल्लेबाज़ी दूसरी पारी में महज 140 रन पर ढह गई और दक्षिण अफ़्रीका ने वह मैच 408 रनों से जीतते हुए सीरीज़ 2-0 से अपने नाम कर ली — यह भारत का घरेलू मैदान पर एक ऐतिहासिक और कड़वा नतीजा रहा। इस हार ने टेस्ट क्रिकेट के ढांचे, चयन रणनीति और टीम के मानसिक स्तर पर गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए हैं।

पूर्व क्रिकेटरों की प्रतिक्रियाएँ — आलोचना और चिंता
सीरीज़ के बाद कई पूर्व खिलाड़ियों ने टीम के संयोजन और चयन नीति पर कटु टिप्पणियाँ कीं। दिनेश कार्तिक और इरफ़ान पठान जैसे पूर्व क्रिकेटरों ने इस हार को निराशाजनक और चिंताजनक बताया है। विश्लेषकों ने विशेषकर अनियमित बैटिंग प्रदर्शन, बार-बार बदलाव और ऑलराउंडरों पर अत्यधिक निर्भरता को टीम की अस्थिरता का मुख्य कारण माना। कुछ पूर्व तेज़ गेंदबाज़ों ने चयन में संतुलन की कमी और टेस्ट टीम के लिए स्पष्ट रूपरेखा न होने पर सवाल उठाए।

वेंकटेश प्रसाद और विश्लेषक चयन नीति पर सख्त हुए — उनका कहना है कि पिछले कुछ मैचों में टीम में बार-बार प्रयोग और ऑलराउंडरों को प्राथमिकता देने से टेस्ट टीम में संतुलन बिगड़ा है। इस नजरिए से उन्होंने सुझाव दिया कि टीम के मूल ढाँचे — अनुभव, तकनीक और स्थिरता — पर ज़ोर दिया जाना चाहिए। यह बहस खासकर तब तीव्र हुई जब शीर्ष क्रम के अनुभवी बल्लेबाज़ों को बाहर कर युवा और अपरिचित विकल्पों को मौके दिए गए।

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गौतम गंभीर की प्रतिक्रिया और रणनीतिक रुख
मैच के तुरंत बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में गौतम गंभीर ने परिस्थितियों को स्वीकारते हुए कहा कि अगर बीसीसीआई को लगे कि वे टीम के लिए उपयुक्त नहीं हैं तो उस पर फैसला बोर्ड करेगा। उन्होंने यह भी ज़ोर देकर कहा कि भारतीय क्रिकेट (Team India) उनसे बड़ा है और फैसला बोर्ड का होगा। साथ ही उन्होंने अपने कार्यकाल की उपलब्धियों — इंग्लैंड में मिले नतीजे, चैंपियंस ट्रॉफी और एशिया कप की जीत — का भी उल्लेख कर अपने बचाव के तर्क दिए। गंभीर ने यह भी कहा कि टेस्ट एक परिवर्तनकालीन दौर से गुजर रहा है और युवा खिलाड़ियों को अनुभव के लिए समय चाहिए।

गौरतलब है कि प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान स्टेडियम में मौजूद कुछ दर्शकों ने गौतम गंभीर के खिलाफ नारे भी लगाए — यह दर्शाता है कि फैंस के भीतर निराशा और आक्रोश भी गहरा है। इंटरनेट और सोशल मीडिया पर भी आलोचनात्मक टिप्पणियों की बाढ़ आ गई, जहाँ कुछ लोगों ने कोचिंग तरीकों और पूर्व खिलाड़ियों के चयन संबंधी दावों पर तीखा प्रहार किया।

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सुनील गावस्कर और आर. अश्विन ने दिया समर्थन
जैसा कि अपेक्षित था, खेल के माहिरों ने कोच के प्रति समर्थन और आलोचना — दोनों की आवाजें उठी। पूर्व कप्तान सुनील गावस्कर ने गौतम गंभीर का खुलकर बचाव किया और आलोचकों पर सवाल उठाया कि जब टीम ने बड़ी प्रतियोगिताएँ जीतीं तब उन्हें चुप क्यों था। गावस्कर ने कहा कि कोच टीम को मार्गदर्शन दे सकता है पर मैदान पर प्रदर्शन खिलाड़ी करते हैं — इसलिए पूरी ज़िम्मेदारी केवल कोच पर डाल देना सही नहीं। उन्होंने सलाह दी कि वास्तविक समस्याओं की तह तक जाकर तकनीकी तथा संरचनात्मक कारणों की पहचान होनी चाहिए।

महत्वपूर्ण: आर. अश्विन ने भी कोच के बचाव में कहा कि कोच बल्ला लेकर रन नहीं बना सकता; टीम की हार-जीत में खिलाड़ियों का योगदान निर्णायक होता है। अश्विन का यह तर्क उन आवाज़ों का समर्थन करता है जो कहते हैं कि चयनकर्ता, कोच और खिलाड़ियों के बीच सामूहिक ज़िम्मेदारी बनती है।

आलोचक क्या कह रहे हैं — स्थिरता पर प्रश्न
आलोचकों का मुख्य तर्क यह रहा कि रोहित शर्मा, विराट कोहली और आर. अश्विन जैसे अनुभवी खिलाड़ियों को टेस्ट टीम से बाहर करने और टीम में बड़े बदलाव करने से स्थिरता लुप्त हुई। कुछ सिद्धांतों के अनुसार लगातार बैटिंग ऑर्डर में फेरबदल और ऑलराउंडरों की भरमार ने टीम के मूल संतुलन को कमजोर कर दिया, जिससे दबाव के समय में प्रदर्शन प्रभावित हुआ। इस दृष्टिकोण के समर्थक चाहते हैं कि टीम में अनुभवी कंधों को स्थान दिया जाए और चयन में दीर्घकालिक रणनीति अपनाई जाए।

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अब आगे क्या? — विषय नियंत्रण और बोर्ड की भूमिका
अब दबाव BCCI पर है कि वह सटीक समीक्षा करे — क्या यह अस्थायी गिरावट है जो अनुभवहीन खिलाड़ियों के लिए सामान्य प्रक्रिया का हिस्सा है, या रणनीतिक दृष्टि से बड़ी ग़लतियाँ हुई हैं जिनका तत्काल सुधार आवश्यक है। कई विश्लेषक सुझाव दे रहे हैं कि अनुभवी पूर्व खिलाड़ियों और कोचों की एक समिति से तकनीकी समीक्षा, चयन नीति की जाँच और युवा खिलाड़ियों के विकास ट्रैक का आकलन होना चाहिए। सुनील गावस्कर ने भी इस तरह के संयोजन की वकालत की है।

दक्षिण अफ़्रीका के हाथों मिली इस शर्मनाक शिकस्त ने भारतीय टेस्ट क्रिकेट के सामने कई प्रश्न खड़े कर दिए हैं — चयन, संतुलन, अनुभव और कोचिंग दृष्टिकोण पर बहस अब तेज़ होगी। गौतम गंभीर पर दबाव है, पर उनकी उपलब्धियों का हिसाब भी ध्यान में रखा जा रहा है। अंततः निर्णायक कदम BCCI को उठाने होंगे — चाहे वह चयन नीति में बदलाव हो, तकनीकी समीक्षा हो या कोच और खिलाड़ियों के बीच तालमेल सुदृढ़ करने के लिए दीर्घकालिक योजना। इस बीच, विशेषज्ञों की विविध राय बताती है कि जल्दी-जल्दी निष्कर्ष पर पहुँचना ठीक नहीं; पर पारदर्शिता और तुरंत सुधार के कदम आवश्यक दिखते हैं।

Gaam Ghar Desk

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