पटना : बिहार में हाल ही हुए विधानसभा चुनावों के बाद एनडीए गठबंधन एक बार फिर सरकार बनाने की ओर बढ़ रहा है। लेकिन इस बार मंत्रिमंडल का पुराने फार्मूले (12-22) नहीं चल पाने की बात चल रही है, और उसके स्थान पर बीजेपी और जेडीयू में बराबर (50-50) मंत्रालयों का फॉर्मूला भारी पड़ रहा है। यह धारणा राजनीतिक गलियारों में तेजी से पनप रही है कि दोनों पार्टियों के बीच सत्ता-साझाकरण में “बड़े भाई–छोटे भाई” का पूर्व मॉडल नहीं, समान भागीदारी का नया समीकरण बन रहा है।’
पुराना फॉर्मूला और उसकी सीमाएँ
पिछले कई कार्यकालों में बिहार में जेडीयू और बीजेपी ने सम्पर्क-सूत्रों में 12-22 या अन्य असमान मंत्रिमंडल कोटों पर सहमति जताई थी। इन फॉर्मूलों में आमतौर पर बीजेपी को ज्यादा मंत्री पद दिए जाते थे क्योंकि उसकी विधानसभा में संख्या अधिक होती थी।
लेकिन इस बार स्थिति बदल गई है। विधानसभा चुनाव में दोनों पार्टियों ने 101-101 सीटें पर चुनाव लड़ा है, जैसा कि सीट-शेयरिंग फॉर्मूले में तय किया गया था। इस बराबरी ने मंत्रिमंडल कोटों में भी समान हिस्सेदारी की मांग को मजबूती दी है।
50-50 फॉर्मूले का दबाव क्यों बढ़ा
सूत्रों की मानें तो एनडीए के कुछ अंदरूनी दिग्गजों ने जेडीयू और बीजेपी को समनुपातिक मंत्रालय बंटवारे का प्रस्ताव रखा है — खासकरायी उसी फार्मूले की तरह जो टिकट बंटवारे में लागू हुआ था। रिपोर्ट्स के मुताबिक, मंत्रिमंडल में बराबर हिस्सेदारी देने का प्रस्ताव मुख्य चर्चा में है।
इसके अतिरिक्त, जेडीयू के नेताओं ने यह भी संकेत दिया है कि वे “बड़े-भाई” की भूमिका (जहां बीजेपी को पैरवी अधिक होती है) को स्वीकार नहीं करना चाहते। अगर 50-50 फॉर्मूला स्वीकार हो जाता है, तो दोनों पार्टियाँ अपने-अपने कोटे में विभागों का बंटवारा भी समान स्तर पर कर सकती हैं, और किसी एक पक्ष का प्रभुत्व नहीं रहेगा। यह शक्ति-संतुलन जेडीयू के लिए एक महत्वपूर्ण राजनीतिक जीत हो सकती है।
तीसरे सहयोगियों का असर
सरकार गठन की बातचीत में जेएनडीए (NDA) के अन्य घटक — जैसे चिराग पासवान की LJP (रामविलास) और जितन राम मांझी की HAM, उपेंद्र कुशवाहा की RLM — भी शामिल हैं। सूत्रों के अनुसार, LJP को दो मंत्री पद दिए जाने की संभावना है, जबकि HAM और RLM को एक-एक मंत्रालय मिल सकता है। इस हिस्सेदारी से न सिर्फ जेडीयू और बीजेपी के बीच बल्कि पूरे NDA के अंदर संतुलन बनाना चुनौतीपूर्ण हो गया है।
पुरानी और नई राजनीति की टकराहट
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह बदलाव सिर्फ कोटे का मामला नहीं है, बल्कि राजनीतिक व्यवहार और शक्ति-साझाकरण की सोच में बड़ा बदलाव दर्शाता है। पुराने मॉडल में, बीजेपी अपनी संख्या की वज़ह से ज्यादा नियंत्रण बनाए रखना चाहती थी। लेकिन इस बार जेडीयू ने सीट शेयरिंग में बराबरी पाकर आत्मविश्वास बढ़ाया है।
इसके अलावा, 50-50 मंत्रिमंडल फॉर्मूले से जातीय और क्षेत्रीय समीकरण भी बेहतर तरीके से संतुलित किए जा सकते हैं। एक संतुलित मंत्रिमंडल दोनों पार्टियों को यह दिखाने का मौका देगा कि वे राज्य में सहयोगी होने के साथ-साथ बराबर भागीदार भी हैं।
चुनौतियाँ और आगे का रास्ता
हालांकि, इस फॉर्मूले को लागू करना आसान नहीं होगा। सीट-शेयरिंग में बराबरी के बावजूद, मंत्रालयों के प्रभार और विभागों के बंटवारे में असमानता की संभावना बनी हुई है। दोनों पार्टियों को यह तय करना होगा कि कौन-सा विभाग किसको मिलेगा — और यह निर्णय जातीय, क्षेत्रीय और संगठनात्मक दबावों में किया जाना है।
अगर जेडीयू और बीजेपी 50-50 फॉर्मूला पर सहमत हो जाते हैं, तो यह बिहार की राजनीति में एक नया रिकॉर्ड बन सकता है: दो मुख्य साझेदारों के बीच पूरी तरह बराबर मंत्रिमंडल हिस्सेदारी। यह कदम एनडीए के अंदर शक्ति-साझाकरण की समझ में न सिर्फ स्थायित्व ला सकता है, बल्कि आगामी चुनावों में दोनों पार्टियों को मिलकर गतिशील और संतुलित सरकार बनाने का आधार भी दे सकता है।




