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स्वतंत्रता के अमर नायक: रामफल मंडल को इतिहास में न्याय कब मिलेगा?

6 अगस्त: महान क्रांतिवीर रामफल मंडल की अमर जयंती

Ramfal Mandal जन्मजयंती विशेष : आज 6 अगस्त है—एक ऐसा दिन जिसे इतिहास के पन्नों में सुनहरे अक्षरों में दर्ज होना चाहिए। यह दिन उस वीर सपूत की जन्मजयंती है जिसने मात्र 19 वर्ष 17 दिन की आयु में भारत मां की आज़ादी के लिए हंसते-हंसते फांसी का फंदा चूम लिया। हम बात कर रहे हैं स्वतंत्रता संग्राम के वीर, अमर बलिदानी श्रद्धेय रामफल मंडल जी की, जिनका जन्म 6 अगस्त 1924 को बिहार के सीतामढ़ी जिले के बाजपट्टी प्रखंड अंतर्गत मधुरापुर गांव में हुआ था।

उनके पिता गोखुल मंडल और माता गरबी देवी ने ऐसे पुत्र को जन्म दिया, जिसने भारत की माटी के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। रामफल मंडल कोई बड़े संगठन का नेता नहीं थे, ना ही उनके पास कोई राजनीतिक संरक्षण था—उनकी सबसे बड़ी ताकत थी देशभक्ति, जो उनके रोम-रोम में बसती थी। 1942 में जब महात्मा गांधी ने “भारत छोड़ो आंदोलन” का आह्वान किया, तब रामफल मंडल जी ने एक पल की भी देरी किए बिना इस आंदोलन की ज्वाला में स्वयं को समर्पित कर दिया।

सीतामढ़ी गोलीकांड और वीर प्रतिशोध

1942 में सीतामढ़ी में हुए गोलीकांड ने आम नागरिकों के साथ-साथ देशभक्तों को झकझोर कर रख दिया। अंग्रेजी हुकूमत द्वारा निहत्थे बच्चों, महिलाओं और वृद्धों पर गो’ली चलाने की बर्बरता के विरोध में, युवा रामफल मंडल ने गडासा उठाया और बाजपट्टी चौक पर अंग्रेजों के अत्याचारियों को न्याय का स्वाद चखाया। अंग्रेजी शासन के अनुसार, उन्होंने उस दिन अनुमंडल पदाधिकारी हरदीप नारायण सिंह, पुलिस इंस्पेक्टर राममूर्ति झा, हवलदार श्यामलाल सिंह और चपरासी दरबेशी सिंह की ह’त्या की।

अदालत नहीं, एकतरफा निर्णय था वो!

इस घटना के बाद उन्हें दफादार शिवधारी कुंवर की मुखबिरी के कारण गिरफ्तार किया गया। पहले डुमरा जेल, फिर भागलपुर केंद्रीय जेल ले जाया गया। अंग्रेजों की अदालत ने उन्हें 15 अगस्त 1943 को फांसी की सजा सुनाई और 23 अगस्त 1943 को उन्हें फांसी पर लटका दिया गया।

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विडंबना यह है कि ठीक पाँच साल बाद, 15 अगस्त 1947 को वही अंग्रेज भारत को छोड़ने पर मजबूर हो गए—पर वो रामफल मंडल को भूल गए। और सिर्फ अंग्रेज ही क्यों, आजाद भारत की सरकारें भी उन्हें भुला बैठीं।

“हमारा दुश्मन सीमा पार नहीं, हमारे भीतर है”

फांसी से पहले रामफल मंडल ने जो शब्द कहे, वे आज भी हर भारतीय को आईना दिखाते हैं—
“हमारा दुश्मन सीमा पार नहीं, हमारे ही बीच में है।”
इस एक वाक्य में आज़ादी की लड़ाई की सबसे कठिन सच्चाई छुपी है—गुलामी केवल बाहरी नहीं होती, आत्मा की गुलामी उससे कहीं खतरनाक होती है।

शहीद का दर्जा नहीं — ये कैसा आज़ाद भारत?

विडंबना देखिए, जिन रामफल मंडल ने भारत की स्वतंत्रता के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया, उन्हें आज तक “शहीद” का आधिकारिक दर्जा नहीं दिया गया है। ना कोई सरकारी स्मारक, ना स्कूल-कॉलेज का नाम, ना ही पेंशन या मान्यता उनके परिवार को। क्या यह उसी भारत की सरकार है जिसके लिए उन्होंने अपने प्राण त्यागे?

गाम घर न्यूज़ की टीम ने जब इस विषय में प्रशासनिक दस्तावेजों की पड़ताल की, तो पाया गया कि आज़ादी के 78 वर्षों बाद भी रामफल मंडल का नाम स्वतंत्रता सेनानियों की आधिकारिक सूची में शामिल नहीं है

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अखिल भारतीय धानुक एकता महासंघ की ओर से सरकार से अहम माँगें:

1. रामफल मंडल को “शहीद” का आधिकारिक दर्जा दिया जाए।
2. शहीद रामफल मंडल के सम्मान में डाक टिकट जारी किया जाए ।
3. सीतामढ़ी जिले में नवनिर्मित मेडिकल कॉलेज का नामकरण अमर शहीद रामफल मंडल मेडिकल कॉलेज किया जाए ।
4. शहीद रामफल मंडल के अपने मधुरापुर गांव में उनकी प्रतिमा या स्मारक का निर्माण हो।
5. सीतामढ़ी जिले में 23अगस्त को आयोजित शहादत दिवस सह शहीदी मेला को राजकीय मेला घोषित किया जाए ।
6. उनके परिवार को स्वतंत्रता सेनानी के आश्रित का दर्जा और सम्मान मिले।

इतिहास की भूल, या जानबूझ कर किया गया अन्याय?

आजादी के 78 वर्ष बीतने के बाद भी इतिहास की पुस्तकों में रामफल मंडल जैसे शहीदों का नाम गायब है। क्या यह केवल भूल है या जानबूझ कर किया गया अन्याय? क्या आज़ादी में उन युवाओं ने जिन्होंने फांसी को गले लगाया था उनका योगदान नहीं है?

बिहार की भूमिका, पर अवहेलना क्यों?

बिहार ने 1857 के विद्रोह से लेकर चंपारण सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन तक देश की स्वतंत्रता में अगुआ भूमिका निभाई। फिर भी यहां के सैकड़ों शहीदों को न तो इतिहास ने सम्मान दिया और न ही वर्तमान शासन-प्रशासन ने। रामफल मंडल जैसे बलिदानी नायक को आज भी सरकारी उपेक्षा झेलनी पड़ रही है।

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युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा

रामफल मंडल केवल एक नाम नहीं, विचार हैं। 19 साल 17 दिन की उम्र में उन्होंने वह कर दिखाया जो आज कई लोग उम्र भर नहीं कर पाते। यदि भारत का प्रत्येक युवा रामफल मंडल के बलिदान की सच्चाई जान ले, तो वह न केवल इतिहास को समझेगा, बल्कि अपने भविष्य को भी संवार सकेगा।

क्या हमें सच में आज़ादी मिली?

रामफल मंडल का जीवन और बलिदान हमसे एक प्रश्न करता है—
“क्या हमें वास्तव में बिना खड्ग, बिना ढाल आज़ादी मिल गई?”
अगर सच में मिली होती, तो आज़ादी के बाद पैदा हुए लोगों की तुलना में आज़ादी के लिए जान देने वाले वीरों के नाम ज्यादा चर्चित होते। लेकिन हुआ ठीक उल्टा।

आज ज़रूरत है पुनः स्मरण और सम्मान की

अब भी समय है कि इतिहास को पुनः लिखें—उसे सच के आईने में देखें। रामफल मंडल जैसे क्रांतिकारियों को इतिहास के अंधेरे कोनों से बाहर लाएं, उनकी मूर्तियां बनवाएं, उनके नाम पर शिक्षण संस्थान, संग्रहालय और शोध केंद्र स्थापित हों। ये सिर्फ श्रद्धांजलि नहीं, हमारी जिम्मेदारी होनी चाहिए।

अमर बलिदानी को शत-शत नमन

आज 6 अगस्त को अमर शहीद श्रद्धेय रामफल मंडल जी की जयंती पर
गाम घर न्यूज की ओर से उन्हें कोटिशः वंदन, अभिनंदन और श्रद्धा सुमन।
उनका जीवन हर भारतीय को यह सोचने पर विवश करता है—
“हमने किन्हें याद रखा, और किन्हें भुला दिया?”

जय हिंद। वंदे मातरम्।

N Mandal

Naresh Kumar Mandal, popularly known as N. Mandal, is the founder and editor of Gaam Ghar News. He writes on diverse subjects including entertainment, politics, business, and sports, with a deep interest in the intersection of cinema, politics, and public life. Before founding Gaam Ghar News, he worked with several leading newspapers in Bihar.

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