Patna : बिहार में सिपाही भर्ती परीक्षा के पेपर लीक मामले में प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक (DGP) एस.के. सिंघल (Dgp Singhal) की मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही हैं। इस प्रकरण में उनकी संलिप्तता सामने आने के बाद अब उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई की तैयारी हो रही है। इससे उनकी पेंशन और सेवानिवृत्ति लाभ पर भी खतरा मंडराने लगा है। आर्थिक अपराध इकाई (EOU) ने गृह विभाग को एस.के. सिंघल पर कार्रवाई की अनुशंसा भेजी है, जिससे स्पष्ट संकेत मिलते हैं कि उनकी पेंशन और अन्य लाभों पर भी असर पड़ सकता है।
पेपर लीक मामले में संलिप्तता
सिपाही भर्ती परीक्षा का पेपर लीक होना बिहार के लिए एक बड़ा विवाद साबित हुआ। इस परीक्षा में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार और अनियमितताएं सामने आईं। इस पूरे मामले में एस.के. सिंघल की भूमिका संदिग्ध मानी गई, और उनकी संलिप्तता के सबूत मिलने के बाद अब उनके खिलाफ कार्रवाई का रास्ता साफ होता दिख रहा है। आर्थिक अपराध इकाई ने अपनी जांच में सिंघल की भूमिका को लेकर गृह विभाग को रिपोर्ट सौंपी है। इसके बाद पुलिस मुख्यालय और गृह विभाग दोनों ने इस रिपोर्ट का अध्ययन शुरू कर दिया है।
पेंशन और सेवानिवृत्ति लाभ पर खतरा
सरकारी नियमों के अनुसार, यदि किसी सेवानिवृत्त अधिकारी के खिलाफ कोई साक्ष्य मिलता है और उस पर विभागीय कार्रवाई की अनुशंसा की जाती है, तो ऐसी स्थिति में पेंशन जब्ती या कटौती का प्रावधान लागू किया जा सकता है। इस मामले में सिंघल की पेंशन पर भी खतरा मंडराने लगा है। अगर उनके खिलाफ ठोस सबूत मिलते हैं और कार्रवाई शुरू होती है, तो उनकी पेंशन रोकने या उसमें कटौती की संभावना बन सकती है।
सेवानिवृत्ति के बाद किसी भी सरकारी अधिकारी को उसके पेंशन और अन्य लाभ दिए जाते हैं, लेकिन अगर सेवा के दौरान या सेवानिवृत्ति के बाद उसकी संलिप्तता किसी आपराधिक या भ्रष्टाचार के मामले में पाई जाती है, तो सरकार के पास उसकी पेंशन को जब्त करने का अधिकार होता है। सिंघल के मामले में भी यही स्थिति बन रही है। हालांकि, सिंघल भारतीय पुलिस सेवा (IPS) के अधिकारी रहे हैं, इसलिए उनकी पेंशन रोकने या किसी अन्य कार्रवाई के लिए गृह मंत्रालय और केंद्रीय लोक सेवा आयोग (UPSC) से अनुमति लेनी होगी। बिना इन संस्थाओं की स्वीकृति के उन पर किसी भी तरह की सख्त कार्रवाई करना संभव नहीं होगा।
पेंशन रोकने की प्रक्रिया
अगर किसी सेवानिवृत्त अधिकारी पर कोई आरोप सिद्ध हो जाता है और कार्रवाई की प्रक्रिया शुरू होती है, तो उसकी पेंशन रोकने का कानूनी प्रविधान होता है। इसके तहत, उस अधिकारी के खिलाफ पेंशन जब्ती या कटौती का प्रस्ताव दिया जा सकता है। हालांकि, भारतीय सेवा के अधिकारियों के लिए यह प्रक्रिया थोड़ी जटिल होती है। गृह मंत्रालय और केंद्रीय लोक सेवा आयोग से अनुमति प्राप्त किए बिना किसी भी भारतीय सेवा के अधिकारी पर यह प्रावधान लागू नहीं किया जा सकता। इस संदर्भ में, अगर सिंघल पर लगे आरोप सही साबित होते हैं, तो उन्हें अपने सेवानिवृत्ति के लाभों से हाथ धोना पड़ सकता है।
केंद्रीय चयन पर्षद से हटाए गए
सिपाही भर्ती परीक्षा के पेपर लीक मामले में सिंघल की भूमिका की पुष्टि होते ही उन्हें केंद्रीय चयन पर्षद (सिपाही भर्ती) के प्रमुख पद से मुक्त कर दिया गया था। यह पद उनके लिए काफी महत्वपूर्ण था, लेकिन पेपर लीक होने के बाद उन पर लगे आरोपों के चलते उन्हें इस पद से हटना पड़ा। इसके बाद, सिंघल ने बिहार राज्य पावर होल्डिंग कंपनी लिमिटेड में सुरक्षा सलाहकार का पद संभाला। यह पद उनके लिए विशेष रूप से सृजित किया गया था, और उन्हें संविदा पर नियुक्त किया गया था।
15 सितंबर को उनकी इस नई जिम्मेदारी को छह महीने पूरे हो जाएंगे। हालांकि, पेपर लीक मामले की जांच और विभागीय कार्रवाई के चलते यह पद भी उनके लिए सुरक्षित नहीं रह सकता। बिजली कंपनी द्वारा सृजित यह पद संविदा आधारित है, और अगर उन पर कोई ठोस कार्रवाई होती है, तो संभव है कि यह पद भी उनसे छीन लिया जाए।
सिपाही भर्ती पेपर लीक मामले ने बिहार के प्रशासनिक और पुलिस तंत्र में भारी हड़कंप मचा दिया है। पूर्व DGP एस.के. सिंघल की संलिप्तता इस मामले को और भी गंभीर बना देती है। आर्थिक अपराध इकाई द्वारा गृह विभाग को की गई अनुशंसा से स्पष्ट है कि अब सिंघल पर कार्रवाई होना लगभग तय है। इसके चलते उनकी पेंशन और सेवानिवृत्ति लाभ भी खतरे में हैं।
भारतीय सेवा के अधिकारियों के लिए पेंशन रोकने की प्रक्रिया जटिल है, लेकिन अगर गृह मंत्रालय और केंद्रीय लोक सेवा आयोग से अनुमति मिल जाती है, तो उनके खिलाफ सख्त कदम उठाए जा सकते हैं। सिंघल की वर्तमान स्थिति इस मामले में काफी अस्थिर है, और आने वाले दिनों में उनके खिलाफ कार्रवाई की संभावना बढ़ रही है।