पटना : बिहार विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) को मिली करारी हार के बाद पार्टी के भीतर असंतोष खुलकर सामने आने लगा है। सोमवार को राजद विधायक दल की बैठक के बाद पटना स्थित राबड़ी देवी के आवास के बाहर पार्टी समर्थकों ने जमकर हंगामा किया और सांसद संजय यादव के खिलाफ जोरदार नारे लगाए। कार्यकर्ता न सिर्फ हालिया चुनावी नतीजों से नाराज़ हैं, बल्कि इस हार के लिए सीधे-सीधे तेजस्वी यादव के राजनीतिक सलाहकार संजय यादव को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।
सड़क पर उमड़ा गुस्सा, कार्यकर्ताओं ने संजय यादव को बताया ‘हार का कारण’
रैली के बाद बड़ी संख्या में जुटे आरजेडी कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया कि चुनावी रणनीति, टिकट वितरण, सीट बंटवारे और प्रचार-प्रबंधन में भारी चूक हुई, जिसके लिए संजय यादव ज़िम्मेदार हैं। कार्यकर्ताओं का कहना था कि पार्टी की दुर्गति के पीछे “एक निजी सलाहकार का अत्यधिक दखल” वजह बन गया।
कुछ कार्यकर्ताओं ने यह भी आरोप लगाया कि संजय यादव ने पार्टी पर ‘‘अनुचित प्रभाव’’ बना लिया है और कई बार वे यह तय करते रहे कि तेजस्वी यादव से कौन मिलेगा और कौन नहीं। कई नेताओं ने टिकट वितरण के समय से ही शिकायत की थी कि ‘‘पैसा नहीं देने पर टिकट काटे गए’’—हालांकि इन आरोपों पर पार्टी की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी गई है।
राबड़ी आवास पर हुआ था विवाद, रोहिणी आचार्या ने लगाए गंभीर आरोप
इस घटना का पृष्ठभूमि भी चुनाव से जुड़ा ही रहा। दो दिन पहले राबड़ी देवी के आवास पर लालू प्रसाद यादव की बेटी रोहिणी आचार्या और तेजस्वी यादव के बीच तीखी नोकझोंक की खबर सामने आई थी। रोहिणी ने सोशल मीडिया पर दावा किया था कि संजय यादव का नाम लेने पर उन्हें गाली दी गई और यहां तक कि उन पर चप्पल तक चला दी गई। यह घटना पार्टी की अंदरूनी गिरावट और बढ़ते तनाव की ओर इशारा करती है।
महागठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर भी रहा विवाद
महागठबंधन की ओर से सीट बंटवारे के समय कांग्रेस और अन्य घटक दलों के साथ कई दौर तक खींचतान चली। अंततः कई सीटों पर फ्रेंडली फाइट की स्थिति बन गई, जिससे महागठबंधन को भारी नुकसान पहुंचा। पार्टी नेताओं का मानना है कि इस दौरान भी संजय यादव के प्रभाव के कारण कई निर्णय समय पर और तार्किक तरीके से नहीं हो पाए।
आरजेडी के लिए यह चुनाव ऐतिहासिक गिरावट रहा
2020 के चुनाव में जहां राजद 75 सीटें जीतकर बिहार में सबसे बड़ा दल बना था, वहीं इस बार पार्टी महज 25 सीटों पर सिमट गई। यह आंकड़ा पार्टी के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं है। तेजस्वी यादव खुद राघोपुर सीट पर बेहद कम अंतर से जीत पाए। दो सीटें और कम होतीं तो आरजेडी मुख्य विपक्षी दल का दर्जा भी गंवा देती।
वोट प्रतिशत में मिला समर्थन, पर सीट में नहीं बदल पाया भरोसा
राजद को पूरे बिहार में लगभग 23% वोट मिले, लेकिन वोटों का यह आधार सीटों में परिवर्तित नहीं हो सका। जिन सीटों पर आरजेडी चुनाव लड़ रही थी, उन पर उसे औसतन 38.9% वोट मिले। दूसरी ओर एनडीए के दलों—बीजेपी, जेडीयू और एलजेपी-आर—ने अपने-अपने क्षेत्रों में जबरदस्त प्रदर्शन किया।
- बीजेपी: लड़ाई वाली सीटों पर 48.6%
- जेडीयू: 46.3%
- एलजेपी-आर: 43.2%
इसके मुकाबले महागठबंधन की सभी पार्टियाँ औसतन 39% के भीतर सिमट गईं, जिससे उन्हें सीटें निकालने में भारी दिक्कत का सामना करना पड़ा।
विशेषज्ञों के अनुसार, एनडीए की सीट-वार रणनीति और मजबूत जातीय समीकरण ने महागठबंधन को सीधी टक्कर देकर पछाड़ दिया। राजद के लिए सबसे बड़ी समस्या यह रही कि उसके वोट कई क्षेत्रों में बिखरे मिले, जबकि एनडीए अपने कोर वोटर को सघन रूप से सीटों में बदलने में सफल रहा।
अब पार्टी के सामने दो बड़ी चुनौतियाँ
राजद के भीतर इस समय दो बड़ी चुनौतियाँ उभरकर सामने आई हैं—
- आंतरिक असंतोष नियंत्रित करना
संजय यादव विवाद ने पार्टी के अंदर नेतृत्व की शैली और फैसलों पर सवाल खड़े कर दिए हैं। कार्यकर्ताओं का विश्वास दोबारा जीतना पार्टी के लिए अनिवार्य हो गया है। - भविष्य की रणनीति तय करना
2020 के मुक़ाबले 50 सीटों की गिरावट ने नेतृत्व को गहरे आत्ममंथन के लिए मजबूर कर दिया है। आगे महागठबंधन में पुनर्गठन और नई रणनीति तय करना पार्टी की प्राथमिकता होगी।




