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समस्तीपुर सहित 6 जिलों में मां के दूध में यूरेनियम, एम्स–एमसीआई रिपोर्ट…

समस्तीपुर समेत बिहार के 6 जिलों में मां के दूध में ‘धीमा ज़हर’? एम्स–महावीर कैंसर संस्थान की संयुक्त रिसर्च में चौंकाने वाला दावा

पटना : मां का दूध नवजात शिशु के लिए सबसे संपूर्ण और सुरक्षित आहार माना जाता है। यह न केवल बच्चे को संक्रमणों से बचाता है, बल्कि उसके मानसिक और शारीरिक विकास की मजबूत नींव भी रखता है। इसलिए डॉक्टर लंबे समय से छह माह तक केवल स्तनपान की सलाह देते रहे हैं। लेकिन बिहार में हुए एक नए शोध ने चिंता बढ़ा दी है। रिपोर्ट के अनुसार, राज्य के छह जिलों — भोजपुर, बेगूसराय, समस्तीपुर, खगड़िया, कटिहार और नालंदा — की स्तनपान कराने वाली महिलाओं के दूध में यूरेनियम (यू-238) की मौजूदगी पाई गई है।

रिसर्च में क्या पाया गया?

दिल्ली एम्स और पटना के महावीर कैंसर संस्थान के विशेषज्ञों ने 2021 से 2024 के बीच इन छह जिलों की कुल 40 महिलाओं पर अध्ययन किया। शुरुआती निष्कर्ष बताते हैं कि जिन क्षेत्रों में भूजल में यूरेनियम की मात्रा अधिक है, वहां यह प्रदूषण महिलाओं के शरीर में पहुंचकर मां के दूध तक पहुँच रहा है। रिसर्च टीम के अनुसार, यह स्थिति नवजात शिशुओं और माताओं दोनों के लिए जोखिम उत्पन्न कर सकती है। लंबे समय तक ऐसे तत्वों के संपर्क में रहने से कई तरह की शारीरिक समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है।

हालांकि विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि यह सैंपल साइज छोटा है, इसलिए यह अध्ययन प्राथमिक स्वरूप में है और इसे लेकर अभी और रिसर्च की आवश्यकता है। स्वास्थ्य विभाग ने भी त्वरित जांच शुरू करने का संकेत दिया है।

सरकार की प्रतिक्रिया

बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे ने कहा कि विभाग मामले को बेहद गंभीरता से देख रहा है।
“लोगों को घबराने की जरूरत नहीं है। पहले यह जांचना आवश्यक है कि रिसर्च में कही गई बातें किस हद तक सही हैं। हम इस दिशा में आवश्यक कदम उठा रहे हैं,” उन्होंने कहा।

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क्या स्तनपान रोकना चाहिए? विशेषज्ञ की राय

एम्स नई दिल्ली के वरिष्ठ विशेषज्ञ डॉ. अशोक शर्मा का कहना है कि घबराने की आवश्यकता नहीं है।
“मां के दूध में पाया गया यूरेनियम आमतौर पर बहुत कम मात्रा में होता है। शरीर इसका अधिकांश हिस्सा यूरिन के माध्यम से बाहर निकाल देता है। इसलिए स्तनपान जारी रखें। बिना डॉक्टर की सलाह के स्तनपान रोकना किसी भी हाल में उचित नहीं है,” उन्होंने कहा।

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आगे क्या?

शोधकर्ताओं का कहना है कि भूजल की गुणवत्ता और महिलाओं के स्वास्थ्य के बीच संबंध को समझने के लिए विस्तृत अध्ययन की जरूरत है। साथ ही जिन जिलों में भूजल पहले से ही संदिग्ध है, वहां जल शोधन, सुरक्षित पेयजल और सामुदायिक स्वास्थ्य परीक्षण को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

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इस बीच, विशेषज्ञों ने बताया कि पक्का निष्कर्ष तभी निकलेगा जब बड़े स्तर पर सर्वे और विस्तृत लैब परीक्षण किए जाएंगे। लेकिन यह तथ्य साफ है कि बिहार के कई जिलों में जल की गुणवत्ता स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए चुनौती बनी हुई है, और इस दिशा में तुरंत व ठोस कदम आवश्यक हैं।

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