पटना : लालू परिवार में मतगणना के दिन से उठे अंदरूनी विवाद ने चुनावी हार के बाद नया रूप ले लिया है। बिहार विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद परिवार के भीतर उभरे मनभेद अब सार्वजनिक रूप से सामने आ गए हैं। विवाद इतना गंभीर हो गया है कि परिवार के सदस्यों के बीच एक-दूसरे के खिलाफ कड़े शब्द, आरोप-प्रत्यारोप और पारिवारिक अपमान तक की घटनाएँ होने लगीं।
परिवार की पुत्री रोहिणी आचार्य ने अपनी पीड़ा सार्वजनिक करते हुए लिखा — “किसी के घर में रोहिणी जैसी बेटी-बहन पैदा न हो…।” उनके मुताबिक, मेरे अपमान पर न केवल मैं रोई बल्कि मेरी मां राबड़ी देवी और पिता लालू प्रसाद यादव भी आहत होकर रोए। उनकी सास तक इस घटना पर फफक कर रो पड़ीं। रोहिणी का दर्द और आक्रोश बेहद गहरा और व्यक्तिगत है; वे स्वयं इसे राजनीतिक मतभेद नहीं बल्कि पारिवारिक अपमान मान रही हैं।
सूत्रों के अनुसार मतगणना के दिन ही विवाद की शुरुआत हुई थी। जब तेज प्रताप यादव चुनाव हार गए थे तो रात देर तक लालू बाहर निकले थे और अगले दिन परिवार में तनाव साफ महसूस किया गया। बताया जाता है कि रोहिणी से जुड़ा प्रकरण उसी दिन घर के माहौल को और बोझिल कर गया। इस बीच तेजस्वी यादव अपेक्षाकृत शांत दिखे, जबकि परिवार के अन्य सदस्यों के बीच आरोप-प्रत्यारोप तीव्र हो गए।
घटना की पृष्ठभूमि में पार्टी की हार और इसके लिए जिम्मेदारी तय करने की उग्र बातें शामिल हैं। रोहिणी ने आरोप लगाया कि उनकी आवाज़ को दबाया गया और उन्हें अपमानित किया गया। इन आरोपों में किडनी ट्रांसप्लांट के मुद्दे को भी पूरी तरह भावनात्मक मोड़ दिया गया — रोहिणी ने अपने पिता को किडनी देकर जीवनदान दिया है और उनका कहना है कि इसके बाद उन्हें बदले में करोड़ों लिए जाने और अपमान का सामना करना पड़ा। कथित तौर पर कुछ बातें अब गाली-गलौज और चप्पल तक गिर चुकी हैं, जो पारिवारिक रिश्तों की संवेदनशीलता को दर्शाती हैं।
लालू परिवार में मतभेद कोई नई बात नहीं है। मई 2018 में तेज प्रताप की पत्नी ऐश्वर्या राय के ससुराल से रोते हुए निकलने और बाद में कोर्ट तक मामला पहुँचने की घटनाएँ मीडिया में तब सुर्खियाँ बनी थीं। तब भी परिवार ने सामाजिक स्तर पर सुलह के प्रयास किए, पर विवाद बढ़कर कानूनी लड़ाई तक पहुंच गया था। उसी घर की एक बेटी — उस समय की तरह — इस बार भी दुखी आँखों के साथ परिवार से अलग दिखी है।
परिवार के अंदरूनी राजनीति की जड़ें कई वर्षों की पुरानी खटपट में बैठती हैं। तेज प्रताप ने जब अपने आप को पार्टी में अधिक सक्रिय भूमिका की उम्मीद जताई, तो तेजस्वी के नेतृत्व के आगे उनकी जगह नहीं बन पाई। परिवार में शक्ति-पहचान और उत्तराधिकारी के हवाले से पहले से ही घाव मौजूद थे। तेज प्रताप ने आरोप लगाए हैं कि कुछ ‘जयचंद’ तत्व हैं जिन्होंने चुनाव से पहले उन्हें पार्टी व परिवार से अलग किया। इसके बाद तेज प्रताप ने अपने पुराने मित्र संजय यादव को राज्यसभा का मार्ग दिखाया और उन्हें रणनीतिक भूमिका दी, जिससे तेज प्रताप के लिए भूमिकाएँ सिमट गईं।
रोहिणी प्रकरण में भावनात्मक जुड़ाव और नैतिक दबाव का एक अलग आयाम है। किडनी दान की स्थिति ने पारिवारिक रिश्तों में उलझाव पैदा कर दिया है और रोहिणी का कहना है कि वे न केवल बेटी होने के कारण बल्कि जीवनदान देने के बाद उल्टा नैतिक दबाव महसूस कर रही हैं। उन्होंने यह भी कहा कि मायके में हुए व्यवहार ने न केवल उन्हें बल्कि उनकी सास को भी दर्द दिया है और वे भी रो रही हैं।
घटना के सार्वजनिक होने के बाद राजनीतिक विरोधी दलों और समर्थकों ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी है। कुछ ने पारिवारिक कलह को पार्टी के भीतर गहरे टूट का संकेत माना है, तो कुछ ने इसे व्यक्तिगत मसले करार दिया है। रविवार दोपहर तेज प्रताप यादव ने कहा कि बहन रोहिणी के साथ अन्याय का नतीजा भयावह होगा — यह बयान परिवार के भीतर बढ़ते तनाव और संभावित प्रतिक्रियाओं का संकेत है। तक तटस्थता और मौन बरतने का रवैया देखा गया है, जो परिस्थितियों को और पेचीदा बना रहा है।
रोहिणी का पारिवारिक और वैवाहिक जीवन भी अब चर्चा का विषय बन गया है। उनका विवाह 2002 में समरेश सिंह से हुआ था, जो पहले अमेरिका में और बाद में सिंगापुर में रहे और वर्तमान में एवरकोर में निवेश बैंकिंग के क्षेत्र में रणनीतिक भूमिका निभा रहे हैं। समरेश और उनकी पत्नी रोहिणी तीन बच्चों के साथ विदेश में रहते हैं, जबकि पारिवारिक विवाद का केंद्र बिहार में रह गया है। रोहिणी ने कहा है कि मायके में हुए व्यवहार ने न केवल उन्हें बल्कि उनकी सास को भी दर्द दिया है।
विश्लेषकों का मानना है कि यह पारिवारिक विवाद निजी मामला नहीं रहेगा; इससे पार्टी के अंदरूनी संगठन, आगामी राजनीतिक रणनीतियाँ और समाज में लालू परिवार की छवि पर असर पड़ सकता है। परिवार के विभाजन की खबरें समर्थकों में बेचैनी पैदा कर सकती हैं और विरोधी दल इसका राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश कर सकते हैं। परिवार कैसे इस संकट का समाधान करता है — सुलह, सार्वजनिक माफी, या न्यायिक रास्ता — यह आने वाले दिनों में स्पष्ट होगा।
अंततः यह घटनाक्रम राजनीतिक हार से उपजी पारिवारिक तनावों का नतीजा है, जिसने निजी रिश्तों को सार्वजनिक संघर्ष में बदल दिया है। लालू परिवार की एकता वाधित दिखती है और बहसों का स्तर जिस तरह बढ़ रहा है, उससे प्रतीत होता है कि यह मुद्दा न केवल घर तक सीमित रहेगा बल्कि राज्य की राजनीति में भी गूंज उठेगा। यह चिंता है।




