आज का समाज स्त्री और पुरुष के अधिकारों, कर्तव्यों और उनके संतुलन पर चर्चा के दौर से गुजर रहा है। विकास और सामाजिक प्रगति का पैमाना केवल आर्थिक वृद्धि या औद्योगिक विकास नहीं है, बल्कि यह लिंग समानता और सामाजिक समावेशन के स्तर से भी मापा जाता है। बी.आर. अंबेडकर ने कहा था, “मैं किसी समुदाय की प्रगति को महिलाओं द्वारा हासिल की गई प्रगति के स्तर से मापता हूँ।” यही विचार आज के विकास विमर्श का मूल आधार बन गया है।
जब तक महिलाओं और पुरुषों को समान अवसर और अधिकार नहीं मिलते, तब तक समाज का विकास अधूरा और असंतुलित ही रहेगा। यह लेख स्त्री-पुरुष अधिकारों, सामाजिक बाधाओं, सरकारी नीतियों और सशक्तिकरण के तरीकों पर एक व्यापक दृष्टि प्रस्तुत करता है।
लैंगिक समावेशन और विकास का महत्त्व
लैंगिक समावेशन केवल न्याय का मामला नहीं है; यह सतत विकास की अनिवार्यता भी है। संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य (SDGs) में लिंग समानता को प्रमुख लक्ष्य के रूप में रखा गया है। इसका उद्देश्य केवल महिला अधिकारों की रक्षा नहीं, बल्कि सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्थिरता सुनिश्चित करना है।
लिंग आधारित विकास की अवधारणा
लिंग आधारित विकास का अर्थ है कि सभी विकास नीतियाँ, योजनाएँ और कार्यक्रम महिलाओं और पुरुषों की अलग-अलग जरूरतों को ध्यान में रखकर बनाई जाएँ। पुरुष और महिला समाज में अलग भूमिकाएँ निभाते हैं, इसलिए समान नीतियाँ अक्सर असमान परिणाम देती हैं।
इतिहास में विकास नीतियाँ पुरुष-केंद्रित रही हैं। उदाहरण के लिए, औद्योगिक और कृषि योजनाओं ने अक्सर पुरुष श्रमिकों को प्राथमिकता दी, जबकि महिलाएँ घरेलू और अर्द्ध-औद्योगिक कार्यों में सीमित रह गईं। महिला सशक्तिकरण और नारीवादी आंदोलनों ने इस असमानता को उजागर किया।
‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान इसका प्रमुख उदाहरण है। इसका उद्देश्य बाल लिंगानुपात सुधारना, लड़कियों की शिक्षा और सशक्तिकरण बढ़ाना है। इसी तरह महिला ई-हाट, उज्ज्वला योजना, सुकन्या समृद्धि योजना जैसी पहलें महिलाओं को आर्थिक और सामाजिक रूप से मजबूत बनाती हैं।
आर्थिक सशक्तिकरण और समानता – रोजगार और वित्तीय अधिकार
महिला सशक्तिकरण में आर्थिक स्वावलंबन की प्रमुख भूमिका है। महिलाओं को रोजगार, वित्तीय सेवाएँ, संपत्ति अधिकार और उद्यमिता के अवसर प्रदान करना उनके परिवार और समाज पर सकारात्मक प्रभाव डालता है।
अध्ययन बताते हैं कि महिलाओं की आय में वृद्धि से बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य और समग्र मानव पूंजी में सुधार होता है।
लैंगिक वेतन अंतर
आज भी समान कार्य के लिए महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कम वेतन मिलता है। समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976, इस असमानता को दूर करने के लिए बनाया गया। मातृत्व लाभ (संशोधन) अधिनियम, 2017 ने महिलाओं के लिए मातृत्व अवकाश 26 सप्ताह तक बढ़ाया और क्रेच सुविधा अनिवार्य की।
कौशल और रोजगार प्रशिक्षण
कौशल भारत मिशन और अन्य प्रशिक्षण कार्यक्रम महिलाओं को रोजगार और उद्यमिता के लिए तैयार करते हैं। यह पहल खासकर उन महिलाओं के लिए लाभकारी है जो अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में काम करती हैं, जहाँ नौकरी सुरक्षा और सामाजिक सुरक्षा की कमी होती है।
उद्योगों और कृषि में महिलाओं को भूमि, ऋण और तकनीकी संसाधन उपलब्ध कराने से उनके योगदान में वृद्धि होती है और ग्रामीण विकास भी मजबूत होता है।
शिक्षा और सामाजिक विकास – शिक्षा के अवसर
शिक्षा समानता और सामाजिक प्रगति की नींव है। लिंग आधारित विकास का एक प्रमुख लक्ष्य है लड़कियों और लड़कों को समान शिक्षा अवसर प्रदान करना।
सर्व शिक्षा अभियान (SSA) ने शिक्षा के सार्वभौमिक लक्ष्य को बढ़ावा दिया। कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय (KGBV) ने हाशिए पर पड़े समुदायों की लड़कियों के लिए उच्च प्राथमिक स्तर पर आवासीय शिक्षा उपलब्ध कराई।
पोषण और स्वास्थ्य
प्रधानमंत्री पोषण शक्ति निर्माण योजना (PM Poshan) ने स्कूल में लड़कियों की उपस्थिति और प्रतिधारण दर में सुधार किया। शिक्षित महिलाएँ श्रम शक्ति में सक्रिय होती हैं, परिवार के स्वास्थ्य और बच्चों की शिक्षा में योगदान देती हैं।
बाल विवाह और सामाजिक बाधाएँ
बाल विवाह, लिंग आधारित हिंसा और सामाजिक पूर्वाग्रह महिलाओं के अधिकारों और विकास में बाधक हैं। शिक्षा इन सामाजिक बाधाओं को चुनौती देती है और सशक्त, स्वतंत्र और निर्णायक महिलाओं का निर्माण करती है।
स्वास्थ्य और लैंगिक दृष्टिकोण
महिलाओं और पुरुषों की स्वास्थ्य आवश्यकताएँ अलग होती हैं। महिलाओं को मातृ और प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं, लिंग आधारित हिंसा से सुरक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं तक समान पहुँच सुनिश्चित करना आवश्यक है।
जननी सुरक्षा योजना (JSY) और प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (PMMVY) गर्भवती महिलाओं और शिशुओं के स्वास्थ्य में सुधार लाती हैं। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) और आयुष्मान भारत योजना (PMJAY) माध्यमिक और तृतीयक स्वास्थ्य देखभाल की सुविधा देती हैं।
राजनीतिक सशक्तिकरण – प्रतिनिधित्व और निर्णय
राजनीति में महिलाओं का प्रतिनिधित्व उनके जीवन को प्रभावित करने वाली नीतियों में योगदान की क्षमता बढ़ाता है। 73वें और 74वें संविधान संशोधन ने पंचायती राज संस्थाओं और शहरी निकायों में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित कीं।
महिला आरक्षण अधिनियम, 2023 ने इसे संसद और विधानसभाओं तक बढ़ाया, जिससे महिलाओं को नीति निर्माण में सक्रिय भागीदारी का अवसर मिला।
जलवायु परिवर्तन और महिला सशक्तिकरण
जलवायु परिवर्तन विशेष रूप से महिलाओं को प्रभावित करता है। विकासशील देशों में महिलाएँ पानी, ऊर्जा और खाद्य सुरक्षा के लिए जिम्मेदार होती हैं।
लिंग-संवेदनशील जलवायु नीतियाँ महिलाओं के ज्ञान और कौशल का उपयोग करके सतत संसाधन प्रबंधन में मदद करती हैं। उदाहरण के लिए, सौर ऊर्जा, जल संरक्षण और जैविक कृषि में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने से ग्रामीण विकास और पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित होती है।
कृषि में महिलाओं की भूमिका
कृषि क्षेत्र में महिलाएँ निर्वाह और सहायक कृषि कार्यों में प्रमुख योगदान देती हैं। भूमि अधिकार, ऋण, बीज, उर्वरक और आधुनिक तकनीकी उपकरणों तक पहुँच से उनकी उत्पादकता बढ़ती है।
महिला किसानों को सशक्त बनाना सतत कृषि पद्धतियों, ग्रामीण विकास और खाद्य सुरक्षा में सहायक है।
सामाजिक-सांस्कृतिक बाधाएँ
गहरे सामाजिक-सांस्कृतिक मानदंड अक्सर लैंगिक असमानता को बनाए रखते हैं। ये मानदंड महिलाओं के अवसर, निर्णय लेने की शक्ति और स्वतंत्रता को सीमित करते हैं।
समाज में शिक्षा, समर्थन, सामुदायिक सहभागिता और जागरूकता अभियान से इन्हें चुनौती देना आवश्यक है। उदाहरण के लिए, महिला मंडल, स्वयं सहायता समूह और शिक्षा केंद्र सामाजिक बाधाओं को तोड़ने में मदद करते हैं।
स्त्री-पुरुष और यौन अधिकार
वैवाहिक जीवन में ‘मैरिटल रेप’ यानी वैवाहिक बलात्कार जैसे विवाद ने महिला अधिकारों पर चर्चा बढ़ाई है। वैवाहिक जीवन में सहमति आधारित यौन संबंध स्त्री और पुरुष दोनों का प्राकृतिक अधिकार है।
यौन हिंसा का कोई स्थान सफल वैवाहिक जीवन में नहीं होना चाहिए। ग्रामीण और शहरी इलाकों में आंकड़े बताते हैं कि महिलाओं का एक बड़ा हिस्सा यौन हिंसा का शिकार होता है।
महिलाओं की क्षमताएँ और उपलब्धियाँ
वैज्ञानिक अध्ययन और ऐतिहासिक उदाहरण स्पष्ट करते हैं कि स्त्रियाँ निर्णय लेने, नेतृत्व और बुद्धिमत्ता में पुरुषों से कम नहीं हैं।
- मदाम क्यूरी – विज्ञान में उत्कृष्ट योगदान
- सरोजनी नायडू – भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और साहित्य
- इंदिरा गांधी – भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री
- रानी झाँसी – स्वतंत्रता संग्राम की वीरांगना
- कल्पना चावला – अंतरिक्ष विज्ञान में योगदान
- लता मंगेशकर – भारतीय संगीत की स्वर सम्राज्ञी
ये उदाहरण साबित करते हैं कि समान अवसर मिलने पर महिलाएँ पुरुषों के समकक्ष या उनसे अधिक दक्ष होती हैं।
स्त्री-पुरुष के समान अधिकार और अवसर, सामाजिक न्याय, समावेशी विकास और मानव कल्याण की नींव हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, राजनीतिक भागीदारी, जलवायु प्रबंधन और कृषि में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करना केवल न्यायसंगत नहीं, बल्कि सतत् विकास की पूर्वापेक्षा है।
महिलाओं का सशक्तिकरण परिवार, समाज और राष्ट्र की प्रगति के लिए अनिवार्य है। यह केवल महिलाओं के अधिकारों की रक्षा नहीं है, बल्कि समाज और राष्ट्र के विकास की गारंटी भी है।
“स्त्री-पुरुष के समान सरोकारों को शामिल किये बिना विकास संकटग्रस्त है।” — बी.आर. अंबेडकर