भाषा-साहित्यग़ज़ल

ये वक्त ले गया गले से हार खींच कर – ग़ज़ाला तबस्सुम

ग़ज़ल

ग़ज़ाला तबस्सुम

वो दोस्ती की जां से हरिक तार खींच कर
मेरा यक़ीन ले गया ग़द्दार खींच कर।

दिन मोतियों से हाथ की मुठ्ठी में हैं बचे
ये वक़्त ले गया गले से हार खींच कर

हर सिम्त भीड़, शोर शराबा किसे पसन्द
ले जाती हैं ज़रूरतें बाज़ार खींच कर ।

अफ़साना चल रहा था मगर, मौत ले गयी
दौराने ज़िन्दगी से ही किरदार खींच कर

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बस खामशी से जंग लड़े जा रहे थे हम
वो लड़ रहे थे लफ्ज़ की तलवार खींच कर।

ग़ज़ाला तबस्सुम, हामीदनगर, बर्नपुर, पश्चिमी बर्धमान.

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