“चप्पल और चरखा” : एन. मंडल की कविता से बिहार की राजनीति में नई बहस
एन. मंडल की कविता में "चप्पल" और "चरखा" केवल प्रतीक नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक संघर्ष और आम जनता की आवाज़ के रूप में उभरते हैं। चरखा गाँधी की आत्मा का प्रतीक है, जो आत्मनिर्भरता और स्वदेशी का संदेश देता है। वहीं, चप्पल आम जनता के संघर्ष और सड़क पर उतरने वाली क्रांति का प्रतीक बन जाता है।
फिल्मकार और जनसेवक एन. मंडल इन दिनों लगातार अपने सोशल मीडिया पोस्ट के कारण चर्चा में बने हुए हैं। कभी “सुख • सम्मान • स्वाभिमान” का नारा देकर जनकल्याण की बात करते हैं, तो कभी रोसड़ा की अति पिछड़ेपन की पीड़ा को आवाज़ देते हैं। इसी कड़ी में हाल ही में उन्होंने अपनी फेसबुक वॉल पर एक मार्मिक कविता “चप्पल और चरखा” साझा की, जिसने न केवल साहित्यिक हलकों में हलचल मचाई बल्कि बिहार की राजनीति में भी नई बहस छेड़ दी।
कविता का सार और राजनीतिक संदेश
एन. मंडल की कविता में “चप्पल” और “चरखा” केवल प्रतीक नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक संघर्ष और आम जनता की आवाज़ के रूप में उभरते हैं। चरखा गाँधी की आत्मा का प्रतीक है, जो आत्मनिर्भरता और स्वदेशी का संदेश देता है। वहीं, चप्पल आम जनता के संघर्ष और सड़क पर उतरने वाली क्रांति का प्रतीक बन जाता है।
कविता में यह सीधा सवाल उठाया गया है कि —
“न कौशल रहा, न कारीगरी, बस नेता की कुर्सी छूटी।”
यह पंक्ति आज की राजनीति पर गहरा व्यंग्य है। एन. मंडल साफ कह रहे हैं कि नेताओं की कुर्सी पर पकड़ मज़बूत हो गई है, मगर जनता का कौशल, कारीगरी और संघर्ष हाशिए पर धकेल दिया गया है।
रोसड़ा और शिवाजीनगर से उठती आवाज़
एन. मंडल लगातार अपने पोस्ट में रोसड़ा और आसपास के क्षेत्रों की उपेक्षा का मुद्दा उठा रहे हैं। उनका कहना है कि रोसड़ा की उपेक्षा केवल विकास की रफ्तार को रोकना नहीं है, बल्कि जनता की आकांक्षाओं के साथ अन्याय है।
वह पूछते हैं:
- रोसड़ा–शिवाजीनगर–बहेड़ी मार्ग का चौड़ीकरण कब होगा?
- रोसड़ा–भिड़हा–काकड़–दसौत–कामख्या चौक सड़क की दुर्दशा कब सुधरेगी?
- रोसड़ा जिला बनाने की मांग आज भी अधूरी है।
जनता की समस्याओं को सीधे सामने रखकर एन. मंडल यह संकेत देते हैं कि राजनीति सिर्फ नारों से नहीं, बल्कि ठोस कार्रवाई से बदलती है।
सुपौल की त्रासदी और सरकार पर सवाल
एन. मंडल ने सुपौल के बीएलओ का पानी पार करते हुए वीडियो शेयर कर सरकार पर तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा कि जब सरकारी कर्मचारी को ही अपनी जान जोखिम में डालकर ड्यूटी करनी पड़े, तो आम जनता का हाल कैसा होगा? 35 वर्षों से कोसी में पुल निर्माण का वादा अधूरा है और नाव की सुरक्षा तक उपलब्ध नहीं। उनका सीधा सवाल था —
“क्या बीएलओ और आम लोगों की जान की कोई कीमत नहीं?”
लोकतंत्र पर हमला और सोनम वांगचुक का मुद्दा
सोनम वांगचुक जैसे समाज सुधारकों को जेल भेजने पर भी एन. मंडल ने बेबाकी से सरकार की आलोचना की। उन्होंने इसे केवल किसी व्यक्ति पर हमला नहीं, बल्कि लोकतंत्र की आत्मा पर सबसे बड़ा वार बताया। शांतिपूर्ण आंदोलनों को दबाना उनके अनुसार लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए घातक है।
क्या राजनीति में आने वाले हैं एन. मंडल?
एन. मंडल इन दिनों विभिन्न राजनीतिक नेताओं के साथ नज़र आ चुके हैं। हालांकि उन्होंने अभी तक राजनीति में प्रवेश को लेकर कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की है, लेकिन उनके सोशल मीडिया पोस्ट और जनता से सीधे संवाद ने संकेत ज़रूर दिए हैं। उनके समर्थक भी लगातार यह मांग कर रहे हैं कि वे राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाएं।
कविता से निकला राजनीति का घोषणापत्र
“चप्पल और चरखा” केवल एक कविता नहीं, बल्कि इसे एन. मंडल का राजनीतिक घोषणापत्र भी माना जा रहा है। इसमें उन्होंने विकास, आत्मनिर्भरता, और जनता के संघर्ष को केंद्र में रखा है।
कविता के अंतिम अंश में वे लिखते हैं:
“यह क्रांति है चप्पल और चरखे की,
न शोर है, न खून की धार है।
पर जहाँ ये उठते हैं सच्चाई से,
वहीं झुकता दरबार है।”
यह पंक्तियाँ साफ संदेश देती हैं कि एन. मंडल बदलाव की राजनीति की ओर संकेत कर रहे हैं — जहाँ हथियार नहीं, बल्कि संघर्ष और सत्य की ताक़त दरबार को झुकाती है।
एन. मंडल की इस कविता ने यह स्पष्ट कर दिया है कि उनकी सोच केवल फ़िल्मों और साहित्य तक सीमित नहीं है। वे सामाजिक न्याय, लोकतांत्रिक अधिकार और विकास जैसे गंभीर मुद्दों पर खुलकर अपनी राय रखते हैं।
सोशल मीडिया के माध्यम से उनकी आवाज़ गाँव-गाँव तक पहुँच रही है और यह सवाल अब और मज़बूत हो रहा है कि —
क्या एन. मंडल आने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में नई राजनीतिक धारा के प्रतिनिधि बनेंगे?
एक बात तय है — “चप्पल और चरखा” अब केवल कविता नहीं, बल्कि बिहार की राजनीति में बदलाव की गूंज बन चुकी है।