Special Feature Report | लोकतंत्र की नई सुबह बिहार ने रचा इतिहास बिहार 2025 के विधानसभा चुनाव में लोकतंत्र का नया अध्याय लिख दिया है। पहले चरण की वोटिंग में 64.69 प्रतिशत मतदान दर्ज हुआ — यह आंकड़ा 1951 से अब तक का सबसे ऊँचा रिकॉर्ड है। 121 विधानसभा सीटों पर हुए मतदान में 3.75 करोड़ मतदाताओं ने 1,314 प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला कर दिया।
चुनाव आयोग ने इसे “लोकतंत्र की सबसे बड़ी जीत” कहा है।
लेकिन इस जीत के भीतर एक बड़ा सवाल छिपा है —
क्या यह रिकॉर्ड वोटिंग सत्ता परिवर्तन का संकेत है, या फिर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की एनडीए सरकार की पुनर्वापसी की भूमिका तैयार कर चुकी है?
ज्ञानेश कुमार बोले — “बिहार ने लोकतंत्र को नई दिशा दी”
मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा —
“1951 के बाद यह सबसे ऊंचा टर्नआउट है। बिहार ने सबसे स्वच्छ वोटर लिस्ट, पारदर्शी सिस्टम और भरोसेमंद चुनाव प्रक्रिया का उदाहरण पेश किया है। यह सिर्फ एक चुनाव नहीं, लोकतंत्र की जीत है।”
आयोग के अनुसार इस बार 100% मतदान केंद्रों पर लाइव वेबकास्टिंग,
AI-सक्षम मॉनिटरिंग, और स्मार्ट रिपोर्टिंग डैशबोर्ड का इस्तेमाल किया गया।
47,263 बैलेट यूनिट्स, 45,341 कंट्रोल यूनिट्स, और 45,341 वीवीपैट मशीनों में से केवल 1.21% बदली गईं —
यह तकनीकी पारदर्शिता का ऐतिहासिक रिकॉर्ड है।
64.69% वोटिंग — बदलाव की आहट या भरोसे का विस्तार?
2020 के पहले चरण में 55.68% मतदान हुआ था।
इस बार यह आंकड़ा लगभग 9 प्रतिशत ज्यादा है।
इतिहास गवाह है कि जब-जब बिहार में वोटिंग 5% से अधिक बढ़ी,
राजनीति में भूकंप आया।
1967 में कांग्रेस गिरी,
1990 में लालू उभरे,
2005 में नीतीश ने सत्ता संभाली।
तो क्या 2025 में भी ऐसा ही कुछ होने जा रहा है?
विशेषज्ञ मानते हैं — यह बढ़ोतरी सिर्फ बदलाव का नहीं, बल्कि सहभागिता का संकेत भी है।
राजनीतिक विश्लेषक हेमंत कुमार कहते हैं,
“जब जनता रिकॉर्ड संख्या में वोट करती है, तो इसका मतलब है कि वह ‘नया निर्णय’ लेने को तैयार है। चाहे वह बदलाव हो या पुनर्विश्वास।”
वोटिंग के पांच प्रमुख कारण: क्यों टूटा 70 साल का रिकॉर्ड
महिला शक्ति की निर्णायक भूमिका
इस बार महिला मतदाताओं की भागीदारी पुरुषों से अधिक रही।
NDA की “महिला सशक्तिकरण योजना” और तेजस्वी यादव के “महिला भत्ता वादा”
ने महिला वोट बैंक को केंद्र में ला दिया।
1.21 करोड़ महिला वोटर इस चुनाव की सबसे बड़ी निर्णायक ताकत बन गईं।
जन सुराज इफेक्ट
प्रशांत किशोर के “जनता से नेता” वाले नारे ने युवाओं और शिक्षित वर्ग को आकर्षित किया।
उनकी door-to-door campaign शैली ने ग्रामीण इलाकों में विचार का माहौल बनाया —
भले वे जीतें या न जीतें, पर तीसरे मोर्चे की हवा उन्होंने जरूर बना दी।
छठ पर्व के बाद का कैलेंडर इफेक्ट
इस बार मतदान छठ पर्व के बाद हुआ।
प्रवासी बिहारी, जो आमतौर पर त्योहार के बाद लौट जाते हैं,
वे इस बार गांवों में रुककर वोट डालने पहुंचे।
इसने मत प्रतिशत में बड़ी छलांग दी।
वादों की बारिश
दोनों गठबंधनों ने घोषणापत्रों में ऐसे वादे किए जो सीधे दिल तक पहुंचे —
तेजस्वी का “10 लाख नौकरी मिशन” और नीतीश का “सशक्त महिला, समृद्ध बिहार”
दोनों ने जनता के बीच भावनात्मक जुड़ाव बनाया।
SIR में शुद्ध वोटर लिस्ट
स्पेशल समरी रिवीजन (SIR) में करीब 65 लाख निष्क्रिय वोटर हटाए गए।
जिससे लिस्ट “प्योर” बनी और प्रतिशत बढ़ा दिखा।
चुनाव आयोग का दावा — “यह बिहार के इतिहास की सबसे शुद्ध वोटर लिस्ट है।”
पहले चरण का सियासी भूगोल: कौन आगे, कौन पीछे
पहले चरण में 18 जिलों की 121 सीटों पर मुकाबला हुआ।
सबकी निगाहें कुछ हॉट सीटों पर रहीं —
- राघोपुर: तेजस्वी यादव की प्रतिष्ठा दांव पर।
बीजेपी के सतीश कुमार के साथ मुकाबला।
यहाँ जन सुराज ने भी चंचल सिंह को उतारा है। - महुआ: तेजप्रताप यादव का मोर्चा, जहाँ मुकाबला त्रिकोणीय।
आरजेडी के मुकेश रौशन, एलजेपी (रामविलास) के संजय सिंह,
और निर्दलीय आसमा परवीन मैदान में। - सरायरंजन: जदयू के वरिष्ठ नेता विजय चौधरी,
विपक्ष की रणनीति का केंद्र। - कल्याणपुर: सूचना मंत्री महेश्वर हजारी के लिए अग्निपरीक्षा।
- सोनबरसा और बहादुरपुर:
रत्नेश सदा और मदन सहनी के प्रदर्शन पर जदयू की पकड़ निर्भर।
कुल मिलाकर मुकाबला एनडीए बनाम महागठबंधन का दिखा,
लेकिन जन सुराज और निर्दलीय उम्मीदवारों ने कई जगह समीकरण बिगाड़ दिए।
सत्ता परिवर्तन के ऐतिहासिक संदर्भ: जब वोटिंग बढ़ी, तख़्त बदले
बिहार के राजनीतिक इतिहास में वोट प्रतिशत बढ़ने का अर्थ अक्सर सत्ता परिवर्तन रहा है —
| वर्ष | वोटिंग में वृद्धि | परिणाम |
|---|---|---|
| 1967 | +7% | कांग्रेस का पतन, महामाया प्रसाद सिन्हा सीएम बने |
| 1980 | +6.8% | कांग्रेस की वापसी |
| 1990 | +5.8% | लालू यादव का उदय |
| 2005 | -16% | राबड़ी देवी हारीं, नीतीश कुमार सीएम बने |
| 2010 | +7% | नीतीश का “सुशासन” दौर शुरू |
अब 2025 में +8.98% की छलांग के बाद
राजनीति में “नई सुबह” या “पुराने भरोसे की पुनर्पुष्टि” —
दोनों ही संभावनाएँ खुली हैं।
चुनाव आयोग का ‘स्मार्ट मॉडल’ बना चर्चा का विषय
इस बार चुनाव आयोग ने बिहार को
“स्मार्ट डेमोक्रेसी मॉडल स्टेट” घोषित किया है।
नई तकनीकों का उपयोग:
- 100% वेबकास्टिंग
- AI मॉनिटरिंग सिस्टम
- GPS-ट्रैकिंग वाले ईवीएम वाहन
- हर जिले में Election Data Command Room
CEC ज्ञानेश कुमार ने कहा,
“2025 का चुनाव बिहार के प्रशासनिक आत्मविश्वास का प्रतीक है।
न हिंसा, न गड़बड़ी — सिर्फ मतदान और जनता की भागीदारी।”
जमीन पर क्या हुआ: शांतिपूर्ण मतदान, कुछ घटनाएं चर्चा में
अधिकांश जगह मतदान शांतिपूर्ण रहा।
हालांकि कुछ घटनाएं सुर्खियों में रहीं —
- छपरा में मांझी विधायक सत्येंद्र यादव की गाड़ी पर हमला
- डिप्टी सीएम विजय सिन्हा के काफिले पर गोबर फेंका गया
- बक्सर व फतुहा में कुछ बूथों पर मतदान बहिष्कार
फिर भी प्रशासन ने स्थिति नियंत्रण में रखी।
दिलचस्प यह कि 85 वर्ष से ऊपर के दो लाख मतदाताओं
ने भी वोट डालकर लोकतंत्र की मिसाल पेश की।
राजनीतिक समीकरण और संभावित परिदृश्य
नीतीश की मजबूत वापसी —
महिला वोटर और ग्रामीण वर्ग का रुझान NDA के पक्ष में गया तो
2025 में 2010 जैसी “सुशासन वापसी” संभव है।
प्रशांत किशोर का थर्ड फ्रंट उदय —
अगर जन सुराज को 10% वोट भी मिलते हैं,
तो वे 2025 के बाद की राजनीति के निर्णायक खिलाड़ी बन सकते हैं।
तेजस्वी की चुनौती और महागठबंधन की परीक्षा —
अगर नतीजे अपेक्षा से कम रहे, तो
RJD और कांग्रेस के बीच मतभेद गहराएंगे।
छोटे दलों की निराशा —
वीआईपी, हम, और अन्य सहयोगी दल
दोनों गठबंधनों में “वोट-कटवा” की भूमिका में फंस सकते हैं।
विशेषज्ञों की राय: हवा किस ओर बह रही है?
पुष्यमित्र (सीनियर जर्नलिस्ट):
“यह टर्नआउट सत्ता बदलाव का नहीं,
बल्कि सिस्टम में भरोसे की वापसी का संकेत है।”
ओमप्रकाश अश्क (राजनीतिक विश्लेषक):
“वोटिंग बढ़ी जरूर है,
लेकिन गुस्सा नहीं दिखा — माहौल स्थिर है।”
अरुण अशेष (पत्रकार):
“लोकल मुद्दे निर्णायक रहेंगे —
बेरोजगारी, महिला सुरक्षा और महंगाई पर वोट पड़े हैं।”
प्रमोद मुकेश (राजनीतिक विश्लेषक):
“प्रशांत किशोर भले सीटें न जीतें,
पर बिहार की राजनीति का अगला केंद्र वही बनेंगे।”
हेमंत कुमार (राजनीतिक लेखक):
“अगर दूसरे में भी यही रुझान जारी रहा,
तो नतीजों में बड़ा उलटफेर होगा।”
जनता का मूड: भरोसा या बदलाव?
ग्राउंड रिपोर्ट बताती है —
ग्रामीण इलाकों में अब भी नीतीश के विकास कार्यों की चर्चा है,
पर शहरी और युवा मतदाता “नया चेहरा” चाहते हैं।
पटना यूनिवर्सिटी की छात्रा अंशु कुमारी कहती हैं,
“हम रोज़गार, शिक्षा और पारदर्शिता चाहते हैं।
जो भी ये देगा, वही हमारा नेता होगा।”
वहीं मधुबनी के किसान संजय यादव का कहना है,
“नीतीश ने सड़कों और बिजली में सुधार किया है,
लेकिन अब खेत-खलिहान और दाम की बात जरूरी है।”
बिहार ने लोकतंत्र की सबसे ऊँची उड़ान भरी
पहले चरण की ऐतिहासिक वोटिंग ने यह साबित कर दिया —
बिहार अब सिर्फ राजनीति नहीं, लोकतंत्र को जीने की प्रक्रिया है।
64.69% का टर्नआउट कोई साधारण संख्या नहीं,
यह जनता के विश्वास, भागीदारी और चेतना की ताकत है।
अब सबकी निगाहें 14 नवंबर पर टिकी हैं —
जब जनता यह तय करेगी कि
क्या बिहार “सुशासन के निरंतरता” पर भरोसा करेगा,
या “नई सुबह की तलाश” में
नीतीश युग के बाद का अध्याय खोलेगा।




