अमर शहीद रामफल मंडल को नमन
हिला दी थी अंग्रेजों की जड़ें, जब तूने हुंकार भरी,
उम्र थी केवल उन्नीस, पर सीना था आग से भरी।
‘भारत छोड़ो’ का बिगुल बना, तू रण का गर्जन था,
देशभक्ति की राह में, तू पहला अर्जुन था।
फाँसी का फंदा मुस्काकर तूने जब गले लगाया,
तब समझ गया था भारत, आज़ादी का क्या मोल बताया।
ना पद मिला, ना ताम्रपत्र, ना गीतों में तेरा नाम,
इतिहास की गलियों में बस, रह गया तेरा गुमनाम।
जिन्होंने जिये थे देश के लिए, वो कब तक भूले जाएँगे?
क्या सिर्फ़ किताबों में ही वो ‘वीर’ कहलाएंगे?
सरकार से हम पूछते हैं — क्या ये न्याय हो पाया?
जिसे मौत भी झुका न सकी, वो ‘शहीद’ क्यों ना कहलाया?
हम धानुक समाज के वंशज, आज यही संकल्प लें,
जब तक ‘शहीद’ का दर्जा न मिले, चैन से ना हम बैठें।
हर मंच से, हर जनपथ से, उठे एक ही बात,
रामफल मंडल को मिले सम्मान — यही हो आज की बात।
नई पीढ़ी जाने उनको, उनकी कथा सुने, गाए,
शहीदों के प्रति कर्तव्य निभाएं, श्रद्धा का दीप जलाएं।
भारत माँ के उस सपूत को अब सम्मान दिलाना है,
काग़ज़ नहीं, इतिहास में उन्हें शहीद बनाना है। ~©N Manda – एन मंडल