बिहार विधानसभा चुनाव के करीब आते ही एनडीए गठबंधन में असहजता के संकेत दिखने लगे हैं। इस बार भाजपा ने अपने चुनावी एजेंडे को “घुसपैठिया” और राज्य में कथित जनसांख्यिकीय संकट के मुद्दे पर केंद्रित किया है। हालांकि, उसके सबसे बड़े सहयोगी दल जेडीयू ने इस मुद्दे से दूरी बनाए रखी है और लोजपा (चिराग पासवान) ने भी इस पर चुप्पी साध रखी है। राजनीतिक विश्लेषक मान रहे हैं कि यदि यह मतभेद चुनाव से पहले सुलझाए नहीं गए, तो एनडीए की एकजुटता पर असर पड़ सकता है।
बीजेपी का ‘घुसपैठिया’ एजेंडा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 सितंबर को पूर्णिया में रैली में कहा कि एनडीए देश के हर घुसपैठिए को बाहर निकालने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने आरोप लगाया कि आरजेडी और कांग्रेस ऐसे घुसपैठियों को बचाने का काम कर रही हैं। गृह मंत्री अमित शाह ने दिल्ली और बिहार के कार्यक्रमों में भी कांग्रेस पर हमला बोलते हुए कहा कि विपक्षी दल चुनाव जीतने के लिए बांग्लादेश से आए घुसपैठियों का सहारा ले रहे हैं।
अमित शाह ने कहा कि बीजेपी चुनाव आयोग द्वारा चलाए गए स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) अभियान का समर्थन करती है, ताकि मतदाता सूची को घुसपैठियों से मुक्त किया जा सके। उन्होंने राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा पर भी निशाना साधा और कहा कि यह यात्राएं शिक्षा, रोजगार या सड़कों के लिए नहीं, बल्कि घुसपैठियों की रक्षा के लिए थीं।
हालांकि, चुनाव आयोग ने हालिया वोटर लिस्ट अपडेट के दौरान किसी भी घुसपैठ की पुष्टि नहीं की है। इसके बावजूद बीजेपी का यह एजेंडा सीमांचल के मुस्लिम बहुल जिलों जैसे अररिया, पूर्णिया, कटिहार और किशनगंज को ध्यान में रखकर तैयार किया गया माना जा रहा है।
जेडीयू और एलजेपी का परहेज
जेडीयू की राजनीति हमेशा से धर्मनिरपेक्ष और विकास-केंद्रित रही है। पार्टी के वरिष्ठ नेता का कहना है कि बिहार में उनका एजेंडा विकास और प्रशासनिक उपलब्धियों को उजागर करना है, न कि “घुसपैठ” जैसे मुद्दों को चुनाव में प्रमुख बनाना। इसी तरह, लोजपा भी इस मसले पर चुप्पी साधे हुए है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस मतभेद के कारण एनडीए गठबंधन में असहज माहौल बन सकता है। बीजेपी का घुसपैठिया नारा सीमांचल में भावनात्मक असर डाल सकता है, लेकिन पूरे बिहार में इसका असर समान रूप से नहीं पड़ेगा। जेडीयू का इससे किनारा करना एनडीए के भीतर संघर्ष का संकेत है।
विपक्ष का हमला
विपक्षी दलों ने बीजेपी पर जमकर हमला बोला है। आरजेडी के प्रवक्ता सुबोध कुमार मेहता ने कहा कि पीएम मोदी और अमित शाह बिहार में पिछले 20 साल की नाकामी छिपाने के लिए “घुसपैठिया” शब्द का इस्तेमाल कर रहे हैं और चुनाव को सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की ओर ले जाना चाहते हैं। कांग्रेस प्रवक्ता असित नाथ तिवारी ने कहा कि SIR प्रक्रिया के दौरान अब तक किसी बांग्लादेशी या भूटानी मतदाता की पहचान क्यों नहीं हुई। उन्होंने दावा किया कि यूपीए सरकार के दौरान 2005–2014 में 77,156 बांग्लादेशियों को वापस भेजा गया, जबकि एनडीए सरकार में 2015–2017 के बीच केवल 833 ही लौटाए गए।
वोट चोरी बनाम घुसपैठिया नैरेटिव
राजनीतिक विश्लेषक सज्जन कुमार सिंह का कहना है कि कांग्रेस ने इस बार “संविधान खतरे में” वाले मुद्दे से ध्यान हटाकर वोट चोरी को केंद्र में रखकर बीजेपी पर दबाव बढ़ाया है। इसके जवाब में बीजेपी ने कांग्रेस को “प्रो-घुसपैठिया” बताकर पलटवार किया। उनका कहना है कि घुसपैठिया मुद्दा सीमांचल में भावनात्मक असर डाल सकता है, लेकिन पूरे बिहार में इसे लागू करना जेडीयू के रुख से मुश्किल है।
एनडीए की चुनौती
चुनावी समीकरणों के बीच यह स्पष्ट हो गया है कि बीजेपी का घुसपैठिया नारा उसके कोर वोटरों को साधने की कोशिश कर रहा है। वहीं, जेडीयू और एलजेपी का इससे किनारा करना गठबंधन में दरार की संभावना को बढ़ा रहा है। यदि चुनाव से पहले यह मतभेद सुलझाए नहीं गए, तो एनडीए गठबंधन को चुनाव परिणामों में इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि बिहार चुनाव में किसी भी नारा या एजेंडा का असर सिर्फ स्थानीय मतदाताओं और सीमांचल तक सीमित रह सकता है। पूरे राज्य में चुनावी रणनीति और गठबंधन की एकजुटता पर ध्यान केंद्रित करना एनडीए के लिए निर्णायक साबित होगा।