अमित शाह: संविधान ने चुनाव आयोग को मतदाता सूची बनाने का स्पष्ट’
संविधान चुनाव आयोग को मतदाता सूची तैयार करने का अधिकार देता है: गृह मंत्री अमित शाह
लोकसभा में सोमवार को चुनाव सुधारों पर जारी चर्चा के दौरान मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच तीखी बहस देखने को मिली। इस महत्वपूर्ण बहस के केंद्र में निर्वाचन आयोग की भूमिका, मतदाता सूचियों की शुद्धि और मताधिकार से जुड़े संवेदनशील प्रश्न थे।
गृह मंत्री अमित शाह ने सदन में स्पष्ट रूप से कहा कि संविधान निर्वाचन आयोग को मतदाता सूची तैयार करने और उसके विशेष पुनरीक्षण का अधिकार देता है, और यह पूरी तरह आयोग की स्वतंत्र जिम्मेदारी है। उन्होंने आरोप लगाया कि विपक्ष—विशेषकर कांग्रेस—एसआईआर को लेकर ‘‘झूठ फैलाकर’’ देश और चुनाव आयोग की छवि को नुकसान पहुंचा रहा है।
अमित शाह का जवाब: “1952 से चल रही प्रक्रिया”
गृह मंत्री ने कहा कि मतदाता सूची की सत्यता और शुद्धता सुनिश्चित करने के लिए एसआईआर एक आवश्यक प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया का पहला उपयोग 1952 में जवाहरलाल नेहरू के कार्यकाल में किया गया था। उन्होंने बताया कि 2004 के बाद कई राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में SIR नियमित रूप से लागू किया जाता रहा है, परंतु जब विपक्ष को हार का सामना करना पड़ता है, तभी वे इसकी निष्पक्षता पर सवाल उठाना शुरू कर देते हैं।
अमित शाह ने जोर देकर कहा कि निर्वाचन आयोग सरकार के अधीन नहीं होता, बल्कि एक स्वतंत्र संवैधानिक संस्था है। उन्होंने विपक्ष पर आरोप लगाया कि वह इसलिए चिंतित है क्योंकि एसआईआर के तहत अवैध प्रवासियों के नाम हटाए जा रहे हैं, जिससे उनका कथित राजनीतिक आधार प्रभावित होगा।
विपक्ष की आपत्तियाँ और आरोप
चर्चा की शुरुआत कांग्रेस नेता के.सी. वेणुगोपाल ने की। उन्होंने दावा किया कि मतदान का अधिकार लोकतंत्र का मूल आधार है, लेकिन निर्वाचन आयोग ‘‘पक्षपातपूर्ण’’ होता जा रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि 2024 लोकसभा चुनाव से पहले देरी से आयकर रिटर्न दाखिल करने का हवाला देकर कांग्रेस पार्टी के खाते फ्रीज किए गए, जिससे चुनावी गतिविधियों पर असर पड़ा।
उन्होंने बिहार में बड़े पैमाने पर मतदाता सूची से नाम हटाए जाने का मुद्दा भी उठाया और आरोप लगाया कि इससे गरीब और वंचित समुदाय प्रभावित हुए।
आरएसपी के एन.के. प्रेमचंद्रन ने कहा कि एसआईआर एक ‘‘अव्यवस्थित और मनमानी प्रक्रिया’’ बन गया है, जो मतदाता सूची की निष्पक्षता पर सवाल उठाता है।
एसएडी की हरसिमरत कौर बादल ने निर्वाचन आयोग को निष्पक्ष रहने की सलाह दी और सुझाव दिया कि राजनीतिक दलों के घोषणापत्र को कानूनी दस्तावेज बनाया जाना चाहिए।
एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने दावा किया कि एसआईआर का इस्तेमाल चुनिंदा समुदायों को मताधिकार से वंचित करने के लिए किया जा रहा है।
भाजपा का पलटवार
भाजपा सांसद राजीव प्रताप रूडी ने कहा कि मोदी सरकार के कार्यकाल में चुनाव प्रक्रिया और अधिक पारदर्शी और भरोसेमंद बनी है। उन्होंने दावा किया कि बिहार विधानसभा चुनाव और 2024 लोकसभा चुनाव में ‘‘पुनर्मतदान’’ की जरूरत नहीं पड़ी, जो सुधारों का परिणाम है।
पूर्व केंद्रीय मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने कहा कि विपक्ष जब भी चुनाव हारता है, चुनावी प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठाने लगता है। उन्होंने बिहार का उदाहरण देते हुए कहा कि SIR मुद्दे पर कांग्रेस द्वारा की गई तमाम रैलियों और आरोपों के बावजूद, उन्हें विधानसभा चुनाव में मामूली सफलता मिली।
भाजपा सांसद कंगना रनौत ने विपक्ष पर ‘‘सदन न चलने देने’’ का आरोप लगाया और कहा कि मोदी सरकार किसानों और गरीबों के हित में काम कर रही है।
अन्य दलों की प्रतिक्रियाएँ
तृणमूल कांग्रेस की शताब्दी रॉय ने आरोप लगाया कि एसआईआर के कारण बीएलओ पर अत्यधिक दबाव है और पश्चिम बंगाल में कई बीएलओ की मृत्यु भी हुई है। उन्होंने कहा कि अगर बांग्लादेशी या रोहिंग्या देश में प्रवेश कर रहे हैं, तो इसकी जिम्मेदारी केंद्र सरकार की है।
समाजवादी पार्टी की डिंपल यादव ने भी निर्वाचन आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाया और आरोप लगाया कि आयोग सरकार के इशारे पर काम कर रहा है।
केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने कहा कि एसआईआर अवैध प्रवासियों की पहचान के लिए महत्वपूर्ण है और विपक्ष इस मुद्दे को उठाकर अपनी चुनावी हार को छिपाना चाहता है।
नेशनल कॉन्फ्रेंस के मियां अल्ताफ अहमद ने कहा कि आयोग को किसी भी निर्दोष नागरिक पर दबाव नहीं डालना चाहिए और चुनाव प्रक्रिया को पूरी तरह पारदर्शी रखना चाहिए।
जेएमएम के विजय कुमार हंसदक ने कहा कि कई विपक्षी दलों ने सबूतों के साथ शिकायतें कीं, लेकिन आयोग ने कोई कार्रवाई नहीं की।
कांग्रेस के मोहम्मद जावेद ने बिहार में एसआईआर को ‘‘संस्थागत धांधली’’ बताया।
चर्चा की शुरुआत कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने कल की थी।
लोकसभा में चुनाव सुधारों पर हुई इस विस्तृत बहस ने एसआईआर प्रक्रिया, मतदाता सूची की शुद्धता, निर्वाचन आयोग की भूमिका और राजनीतिक दलों के आरोप-प्रत्यारोप पर राष्ट्रीय स्तर पर गंभीर प्रश्न खड़े किए हैं। सरकार इसे आवश्यक प्रक्रिया बता रही है, जबकि विपक्ष इसे राजनीतिक उद्देश्य से प्रेरित बता रहा है। हालांकि, अंतिम निर्णय और भरोसा मतदाता ही तय करेंगे।




