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चौधरी चरण सिंह: किसान राजनीति, राष्ट्रनीति और भारतीय लोकतंत्र की आत्मा

पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न चौधरी चरण सिंह की किसान राजनीति आज भी भारतीय राष्ट्रनीति के लिए प्रासंगिक है। जानिए किसान, लोकतंत्र और नीति का गहरा संबंध।

पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न चौधरी चरण सिंह का जीवन किसान सम्मान, ग्रामीण सशक्तिकरण और ऐसी राजनीति का प्रतीक है जिसमें सत्ता नहीं, बल्कि खेत और किसान केंद्र में रहे।

किसान से राष्ट्र तक की सोच : भारत एक कृषि प्रधान देश है, लेकिन यह भी सच है कि आज़ादी के बाद लंबे समय तक किसान केवल नारों और भाषणों का विषय बने रहे। वास्तविक नीति-निर्माण में उनकी भूमिका सीमित रही। ऐसे समय में चौधरी चरण सिंह का उदय केवल एक राजनेता के रूप में नहीं, बल्कि किसान-चेतना के वैचारिक प्रतिनिधि के रूप में हुआ।

उनकी राजनीति सत्ता प्राप्ति की नहीं, बल्कि नीति परिवर्तन की राजनीति थी। वे मानते थे कि जब तक किसान मजबूत नहीं होगा, तब तक भारत आत्मनिर्भर और आत्मसम्मान से भरपूर राष्ट्र नहीं बन सकता।

“किसान को साथ लेकर चलने वाली राजनीति ही सच्ची राष्ट्रनीति होती है।”

यह कथन चौधरी चरण सिंह की संपूर्ण राजनीतिक दर्शन को एक पंक्ति में समेट देता है।

किसान: केवल अन्नदाता नहीं, राष्ट्र की आत्मा

चौधरी चरण सिंह ने किसान को कभी भावनात्मक “अन्नदाता” की सीमित परिभाषा में नहीं बाँधा। उनके लिए किसान था—

  • उत्पादन की रीढ़
  • ग्रामीण अर्थव्यवस्था की धुरी
  • और लोकतंत्र की असली नींव

उनका मानना था कि शहरों की चमक खेतों की उपेक्षा पर आधारित नहीं हो सकती। यदि किसान कमजोर है, तो उद्योग, बाजार और सत्ता—तीनों अस्थिर हैं।

“किसान केवल अन्नदाता नहीं, वह भारत की चेतना का संरक्षक है।”

यह विचार आज भी उतना ही प्रासंगिक है, जितना उनके समय में था।

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चौधरी चरण सिंह की राजनीति: सत्ता नहीं, सिद्धांत

भारतीय राजनीति में जहाँ समझौते और अवसरवाद आम रहे, वहीं चौधरी चरण सिंह एक अडिग वैचारिक स्तंभ की तरह खड़े रहे। उन्होंने सत्ता के लिए सिद्धांतों को नहीं छोड़ा, बल्कि सिद्धांतों के लिए सत्ता छोड़ी।

  • बड़े उद्योगपतियों की बजाय छोटे किसानों के पक्ष में खड़े रहे
  • कृषि सुधारों को सामाजिक न्याय से जोड़ा
  • भूमि सुधार को केवल आर्थिक नहीं, बल्कि सम्मान का प्रश्न माना
  • उनकी दृष्टि में किसान की इज्जत ही राष्ट्र की असली समृद्धि थी।

किसान की इज्जत ही देश की सच्ची समृद्धि है।

भूमि सुधार और ग्रामीण भारत की नींव

चौधरी चरण सिंह का सबसे बड़ा योगदान भूमि सुधार आंदोलन को वैचारिक मजबूती देना रहा। उन्होंने जमींदारी प्रथा, असमान भूमि वितरण और ग्रामीण शोषण के खिलाफ निर्भीक रुख अपनाया।

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उनका मानना था कि जब तक किसान अपनी जमीन पर अधिकार महसूस नहीं करेगा, तब तक वह राष्ट्र से आत्मीय रिश्ता नहीं जोड़ पाएगा। इसलिए उनकी नीतियाँ केवल कानून नहीं, बल्कि ग्रामीण आत्मसम्मान का दस्तावेज़ थीं।

लोकतंत्र का असली इम्तिहान: खेत और गांव

चौधरी चरण सिंह का स्पष्ट मत था कि लोकतंत्र का मूल्यांकन संसद या सचिवालय से नहीं, बल्कि गांवों और खेतों से होना चाहिए। यदि गांव खाली हो रहे हैं, किसान कर्ज में डूबा है और खेती घाटे का सौदा बन रही है, तो लोकतंत्र केवल कागज़ों में जीवित है।

जो खेत को समझता है, वही देश की जड़ों को पहचानता है।

किसान राजनीति बनाम चुनावी राजनीति

आज की राजनीति में किसान अक्सर—

  • वोट बैंक
  • योजनाओं का लाभार्थी
  • या आंकड़ों की इकाई

बनकर रह जाता है। इसके विपरीत, चौधरी चरण सिंह के लिए किसान था—

  • नीति का केंद्र
  • विमर्श का आधार
  • और सत्ता का नैतिक मानदंड

वे किसान के नाम पर नहीं, बल्कि किसान के साथ राजनीति करते थे।

आज के संदर्भ में चौधरी चरण सिंह की प्रासंगिकता

आज जब किसान आंदोलन, बढ़ती कृषि लागत, बाजार की अनिश्चितता और युवा पीढ़ी का खेती से मोहभंग सामने है, तब चौधरी चरण सिंह की सोच और अधिक प्रासंगिक हो जाती है।

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उनका मॉडल बताता है कि समाधान केवल सब्सिडी या राहत पैकेज नहीं, बल्कि खेती को सम्मानजनक और लाभकारी पेशा बनाना है।

राष्ट्रनीति का किसान-केंद्रित मॉडल

चौधरी चरण सिंह का सपना था—

  • विकेंद्रीकृत विकास
  • मजबूत पंचायत व्यवस्था
  • और ऐसा भारत जहाँ गांव, शहरों पर निर्भर न हों

उनकी राष्ट्रनीति में किसान केवल लाभार्थी नहीं, बल्कि नीति-निर्माण की चेतना था।

स्मरण नहीं, आत्ममंथन की ज़रूरत

चौधरी चरण सिंह केवल एक पूर्व प्रधानमंत्री नहीं थे। वे किसान चेतना के दार्शनिक, ग्रामीण भारत के प्रहरी और भारतीय लोकतंत्र की आत्मा की आवाज़ थे।

उनकी जयंती केवल श्रद्धांजलि का दिन नहीं, बल्कि यह सोचने का अवसर है कि क्या आज की राजनीति किसान को वही सम्मान दे पा रही है, जिसकी नींव उन्होंने रखी थी।

यदि नहीं, तो उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि—
किसान को फिर से राष्ट्रनीति के केंद्र में लाया जाए।

N Mandal

Naresh Kumar Mandal, popularly known as N. Mandal, is the founder and editor of Gaam Ghar News. He writes on diverse subjects including entertainment, politics, business, and sports, with a deep interest in the intersection of cinema, politics, and public life. Before founding Gaam Ghar News, he worked with several leading newspapers in Bihar.

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