नालंदा लिटरेचर फेस्टिवल; राजगीर में पहले संस्करण के लिए पूरी तरह तैयार
विश्वविख्यात प्राचीन ज्ञान परंपरा की धरती नालंदा अब समकालीन साहित्यिक विमर्श का नया केंद्र बनने जा रही है। नालंदा लिटरेचर फेस्टिवल (NLF) अपने पहले संस्करण के लिए पूरी तरह तैयार है, जिसका आयोजन 21 दिसंबर से 25 दिसंबर 2025 तक बिहार के नालंदा जिले के ऐतिहासिक नगर राजगीर स्थित राजगीर कन्वेंशन सेंटर में किया जाएगा। महोत्सव के आयोजकों और अकादमिक सहयोगियों ने शुक्रवार को कार्यक्रम की प्रमुख रूपरेखा और इसके व्यापक दृष्टिकोण की जानकारी साझा की।
नालंदा की कालातीत ज्ञान विरासत से प्रेरित यह साहित्य महोत्सव, विरासत, भाषा और साहित्य के उत्सव के रूप में सामने आ रहा है। इसमें बिहार और उत्तर-पूर्व भारत की साहित्यिक एवं सांस्कृतिक परंपराओं पर विशेष फोकस रहेगा। नालंदा लिटरेचर फेस्टिवल 2025 का उद्देश्य शास्त्रीय और समकालीन साहित्य को एक साझा मंच प्रदान करना, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संवाद को प्रोत्साहित करना तथा लोककथाओं और मौखिक परंपराओं से लेकर आधुनिक और भविष्य उन्मुख लेखन तक विविध साहित्यिक आवाज़ों को सामने लाना है।
महोत्सव के दौरान साहित्यिक विषयों पर सत्र, पैनल चर्चाएं, लेखकों से संवाद और विचारोत्तेजक कार्यशालाएं आयोजित की जाएंगी। इसके साथ ही पुस्तक स्टॉल, पुस्तक समीक्षाएं और लोकार्पण, सांस्कृतिक प्रस्तुतियां तथा प्रतिदिन योग और ध्यान सत्र भी होंगे, जिससे प्रतिभागियों को बौद्धिक, सांस्कृतिक और मानसिक रूप से समृद्ध अनुभव मिल सके।
नालंदा लिटरेचर फेस्टिवल (NALANDA LITERATURE FESTIVAL) के फेस्टिवल डायरेक्टर श्री गंगा कुमार ने कहा कि यह महोत्सव नालंदा की ज्ञान परंपरा को समर्पित एक जीवंत पहल है। उन्होंने बताया कि इसके माध्यम से विद्वानों, लेखकों, कलाकारों और विचारकों को ऐसा मंच दिया जाएगा, जहां परंपरा और आधुनिकता के बीच सार्थक संवाद हो सके।
इस अवसर पर आयोजित चर्चा में कई प्रतिष्ठित हस्तियों ने भाग लिया, जिनमें प्रो. सिद्धार्थ सिंह, कुलपति, नावा नालंदा महाविहार; डी. आलिया, चेयरपर्सन, नालंदा लिटरेचर फेस्टिवल; प्रसिद्ध नृत्यांगना डॉ. सोनल मानसिंह; लेखक व कवि डॉ. पंकज के. पी. श्रेयस्कर; लेखक एवं फेस्टिवल क्यूरेटर पंकज दुबे सहित कई शिक्षाविद, लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता और मीडिया प्रतिनिधि शामिल थे।
नालंदा लिटरेचर फेस्टिवल 2025 के एक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक आयोजन के रूप में उभरने की उम्मीद है, जो नालंदा की संवाद और विचार-विनिमय की परंपरा को नई ऊर्जा देगा और राजगीर को समकालीन साहित्यिक चर्चाओं के वैश्विक मानचित्र पर स्थापित करेगा।




