बिहार विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद राष्ट्रीय जनता दल (राजद) अब बड़े संगठनात्मक एक्शन के मूड में दिख रहा है। पार्टी नेतृत्व—लालू प्रसाद यादव और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव—ने जिस तरह समीक्षा बैठकों में मिली प्रतिक्रिया पर गंभीरता से विचार किया है, उससे साफ संकेत मिलता है कि अब बागी नेताओं पर सख्त कार्रवाई तय है। मंगलवार को समीक्षा बैठक के अंतिम दिन पटना प्रमंडल के जिला अध्यक्ष, प्रधान महासचिव, पूर्व विधायक, पूर्व सांसद और कई वरिष्ठ पदाधिकारी मौजूद रहे। यहां कार्यकर्ताओं ने खुलकर नाराजगी जताई और चुनावी हार के असली कारणों पर विस्तृत चर्चा की।
बगियों की सूची तैयार, दर्जनों नेताओं पर कार्रवाई तय
बैठक के दौरान कई उम्मीदवारों और पदाधिकारियों ने प्रदेश अध्यक्ष मंगनी लाल मंडल को उन नेताओं की सूची सौंपी, जिन्होंने चुनाव में पार्टी विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा दिया। बताया जा रहा है कि पार्टी सुप्रीमो लालू यादव और तेजस्वी यादव के निर्देश पर इन बागी नेताओं पर सख्त कार्रवाई की तैयारी हो चुकी है। दर्जनों नेताओं के खिलाफ कार्रवाई तय मानी जा रही है, जिसमें निलंबन से लेकर पार्टी से निष्कासन तक के कदम शामिल हो सकते हैं।
तेजस्वी तक पहुंच नहीं—कार्यकर्ताओं ने जताई बड़ी नाराजगी
बैठक में एक बड़ा मुद्दा यह रहा कि कई कार्यकर्ताओं ने तेजस्वी यादव से मिलने में होने वाली कठिनाइयों पर चिंता जताई। कार्यकर्ताओं ने साफ कहा कि तेजस्वी यादव को “अपने घर का दरवाजा कार्यकर्ताओं के लिए खोलना चाहिए।” उन्होंने कहा कि बिना ग्राउंड लेवल की बात सुने, बिना पुराने और समर्पित कार्यकर्ताओं के मार्गदर्शन के पार्टी को मजबूत करना मुश्किल है। कार्यकर्ताओं का यह भी कहना था कि तेजस्वी को संगठन की समस्याओं को समझने, कार्यकर्ताओं की बात सुनने और सक्रिय संवाद बनाए रखने की जरूरत है।
‘ए टू जेड’ फॉर्मूला बेअसर—90% की भागीदारी का प्रस्ताव
बैठक में कई नेताओं ने तेजस्वी यादव के “ए टू जेड” सामाजिक समीकरण वाले फॉर्मूले को पूरी तरह नकार दिया। उनका मानना था कि जब तक पार्टी 90% सामाजिक समूहों—खासकर अतिपिछड़ों और अल्पसंख्यकों—की वास्तविक भागीदारी सुनिश्चित नहीं करेगी, तब तक संगठनिक मजबूती संभव नहीं है। नेताओं ने कहा कि इन वर्गों के सुख-दुख में तेजस्वी यादव और प्रमुख नेता नज़र नहीं आते, जो पार्टी के पिछड़ने की एक बड़ी वजह रही।
गरीब कार्यकर्ता चुनाव कैसे लड़ें?—कड़ा सवाल
बैठक में सबसे तीखा सवाल यह उठाया गया कि पार्टी गरीब और जमीनी कार्यकर्ताओं को चुनाव लड़ने में कैसे सहायता करेगी। कार्यकर्ताओं ने पूछा—“क्या पार्टी अपने खर्च पर कम से कम 10 गरीब कार्यकर्ताओं को चुनाव लड़ा सकती है?” इस मुद्दे पर पार्टी पदाधिकारियों की चुप्पी ने भी कई सवाल खड़े कर दिए।
पटना संगठन की कमजोरी और जातीय गानों पर आलोचना
पटना महानगर संगठन की कमजोरी भी चर्चा का बड़ा विषय रहा। कार्यकर्ताओं ने कहा कि राजधानी में संगठन को मजबूत करने के लिए कभी गंभीर प्रयास नहीं किए गए। इसके अलावा, चुनाव के दौरान सोशल मीडिया और सार्वजनिक मंचों पर चल रहे जातीय हिंसा को बढ़ावा देने वाले गानों को भी आरजेडी की हार का कारण बताया गया।
समीक्षा बैठक में कई कार्यकर्ताओं ने हरियाणा से आने वाले कुछ लोगों की पार्टी में बढ़ती सक्रियता पर भी सवाल उठाया, जिन्हें पार्टी के स्थानीय नेतृत्व को कमजोर करने वाला बताया गया।
आगामी दिनों में संभावित बड़ी कार्रवाई
राजद की समीक्षा बैठक में जितनी कठोर बातें सामने आईं, उससे स्पष्ट है कि अब लालू–तेजस्वी नेतृत्व संगठन में बड़े बदलाव करने के मूड में है। आने वाले दिनों में बागियों के खिलाफ कार्रवाई और संगठन पुनर्गठन दोनों की घोषणा हो सकती है।
चुनावी हार ने राजद के भीतर असंतोष और संगठनात्मक खामियों को उजागर कर दिया है। अब यह देखने वाली बात होगी कि लालू और तेजस्वी इन चुनौतियों को किस तरह संभालते हैं और पार्टी को अगले चुनाव तक किस दिशा में ले जाते हैं।




